संप्राप्ति की धारणाएं

 

आगम/संप्राप्ति:- किसी वस्तु की बिक्री करने से एक फर्म को जो कुल रकम प्राप्त होती है उसे फर्म का आगम कहा जाता है।

डूले के अनुसार, “एक फर्म का आगम उसकी बिक्री प्राप्ति या वस्तुओं की बिक्री से मिलने वाले मौद्रिक प्राप्तियां हैं|”
उदाहरण के लिए एक आइसक्रीम बनाने वाली फैक्ट्री प्रतिदिन 1000 आइसक्रीम बनाकर बेचती है| इन आइसक्रीम को बेचने से ₹2000 प्राप्त होते हैं अर्थशास्त्र में इन ₹2000 को उस फर्म का आगम कहा जाएगा|
आगम की धारणाएं
लागत की तरह आगम की भी तीन धारणाएं होती हैं-
1) कुल आगम
2) सीमांत आगम
3) औसत आगम
1- कुल आगम

Total Revenue-TR

एक फर्म द्वारा अपने उत्पादन की एक निश्चित मात्रा को बेचकर जो धन प्राप्त होता हैउसे कुल आगम कहा जाता है। मान लीजिए यदि 1000 आइसक्रीम ₹50 प्रति आइसक्रीम की दर से बेची जाती है तो फर्म का कुल आगम ₹5000 होगा|
                                   कुल आगम = मात्रा × कीमत
Total Revenue (TR) = Quantity (Q) × Price (P)
डूले के अनुसार, “कुल आगम एक फर्म द्वारा प्राप्त बिक्री राशि, प्राप्तियों या आगम का जोड़ है|”
2- सीमांत आगम

Marginal Revenue-MR

सीमांत आगम से अभिप्राय है किसी वस्तु की एक अतिरिक्त या कम इकाई की बिक्री से कुल आगम में होने वाला परिवर्तन| अर्थात एक फर्म द्वारा किसी वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई बेचने या एक इकाई कम बेचने से कुल आगम में जो परिवर्तन होता है उसे सीमांत आगम कहा जाता है। 
फर्गुसन के अनुसार, “एक फर्म द्वारा अपने उत्पादन की एक इकाई कम या अधिक बेचने से कुल आगम में जो अंतर आता है उसे सीमांत आगम कहा जाता है।”
सीमांत आगम = कुल आगम में परिवर्तन/बेचीं गयी मात्रा में परिवर्तन
MR= ΔTR/ ΔQ
या
Marginal Revenue (MR) = TRn-TRn-1
उदाहरण के लिए किसी वस्तु की दस इकाईयाँ बेचने पर कुल आगम ₹1000 होता है इसके विपरीत जब 11वीं इकाई बेची जाती है तो कुल आगम बढ़कर ₹1100 हो जाता है| इसलिए 11वीं इकाई का सीमांत आगम ₹100 होगा|
3-औसत आगम

Average Revenue-AR

औसत आगम से अभिप्राय है उत्पादन की प्रति इकाई की बिक्री से प्राप्त आगमयदि कुल आगम ₹1000 है तथा कुल100 वस्तुएं बेचीं गई है तो औसत आगम ₹10 होगा|
औसत आगम = कुल आगम/बेचीं गयी मात्रा
AR= TR/Q = P
अतएव  औसत आगम वह दर है जिस पर कोई वस्तु बेची जाती है|
दर क्या है?  निश्चित रूप से किसी वस्तु की कीमत को र कहा जाता है| इसलिए औसत आगम को वस्तु की कीमत भी कहा जाता है|
मैकोनल के अनुसार, “किसी वस्तु की बिक्री से प्राप्त होने वाला प्रति इकाई आगम औसत आगम कहलाता है|”
कुल आगम, सीमांत आगम तथा औसत आगम को हम निम्न तालिका से स्पष्ट कर सकते हैं-
उत्पाद
(Q)
कीमत या औसत आगम
(P=AR) (₹)
कुल आगम
(TR=AR×Q)
सीमांत आगम
(MR=TRn-TRn-1)
1
10
10
10-0=10
2
10
20
20-10=10
3
10
30
30-20=10
4
10
40
40-30=10
5
10
50
50-40=10
उपरोक्त तालिका के अध्ययन से इन तीनों के मध्य संबंध स्पष्ट हो जाते हैं-
1) TR=AR×Q = ₹10×5=₹50
        अथवा
   TR=ΣMR (सभी MR मूल्यों का जोड़)
      =10+10+10+10+10=50
2) AR=TR/Q = 50/5=₹10 = कीमत
3) MR=TRn-TRn-1
      = (5 इकाइयों का कुल आगम)-(4 इकाइयों का कुल आगम)
यहाँ यह बात ध्यान रखने योग्य है कि जब AR स्थिर होता है तब AR=MR
4) MR किसी वस्तु की एक अधिक इकाई की बिक्री से कुल आगम में होने वाली वृद्धि है|
5) यदि कीमत (अर्थात AR) स्थिर रहती है तो MR(MR=AR) भी स्थिर रहता है|
6) स्थिर MR से अभिप्राय है कि वस्तु की अतिरिक्त इकाइयां बेचने से कुल आगम में स्थिर वृद्धि होगी अर्थात कुल आगम में स्थिर समान दर से वृद्धि होगी|
क्या MR शून्य या ऋणात्मक हो सकता है?

Can MR be zero or negative?

हां,+
 MR शून्य या ऋणात्मक हो सकता है|
शून्य या ऋणात्मक सीमांत आगम तालिका
उत्पाद
(Q)
कीमत या औसत आगम
(₹)
कुल आगम
(TR)
सीमांत आगम
(MR)
1
100
100
100
2
80
160
160-100=60
4
40
160
160-160=0
5
30
150
150-160= -10

 

उपरोक्त तालिका से निम्नलिखित बातें स्पष्ट होती है-
1) एकाधिकार तथा एकाधिकारी प्रतियोगिता में जब कीमत कम हो रही होती है तो सीमांत आगम शून्य या ऋणात्मक हो सकता है |
2) जब MR=0 होता है तब TR बढ़ना बंद हो जाता है इसलिए जब MR=0 तो TR अधिकतम होता है|
3) जब MR ऋणात्मक होता है तो TR कम होना शुरू हो जाता है|
4) जब MR कम हो रहा होता है तो प्रत्येक अतिरिक्त इकाई की बिक्री के फलस्वरुप TR में पहले से कम वृद्धि होती जाती है| इसलिए TR में घटती दर से वृद्धि होती है|
कुल आगम, औसत आगम/संप्राप्ति और सीमांत आगम/संप्राप्ति में सम्बन्ध-
1- कुल आगम (TR) = AR×Q या ΣMR
2- औसत आगम (AR) = TR/Q
3- सीमांत आगम (MR) = ΔTC/ ΔQ या TCn-TCn-1
4- जब TR बढती दर पर बढ़ता है तो MR भी बढ़ता है|
5- जब TR स्थिर दर पर बढ़ता है तो MR स्थिर रहता है|
6- जब TR घटती दर पर बढ़ता है तो MR घटता है|
7- जब TR अधिकतम होता है तो MR शून्य होता है|
8- जब TR घटता है तो MR ऋणात्मक हो जाता है|
9- जब AR घट रहा होता है तो MR रेखा AR रेखा के नीचे होती है| (यह स्थिति एकाधिकार या एकाधिकारी प्रतियोगिता की स्थिति में होता है|
10- यदि AR स्थिर रहता है तो MR=AR होता है| (यह पूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति में होता है तथा दोनों ही OX अक्ष के समानांतर होते है|)
11- AR सदैव धनात्मक रहता है| यह शून्य या ऋणात्मक नहीं हो सकता | परन्तु MR धनात्मक, शून्य या ऋणात्मक हो सकता है|
12- औसत आगम (AR) शून्य केवल सी अवस्था में हो सकता है जब वस्तु फ्री में ही दी जाएपरंतु वास्तविक जीवन में ऐसा नहीं होता|
13– औसत आगम वक्र को फर्म का मांग वक्र भी कहा जाता है|
कुल आगम, औसत आगम/संप्राप्ति और सीमांत आगम/संप्राप्ति में सम्बन्ध-
आगम की तीनों धारणाओं के मध्य सम्बन्ध निम्न रेखाचित्र से समझा सकते हैं-
Relation between TR AR and MR, economics online class
Relation between TR, AR and MR
रेखाचित्र से ज्ञात होता है कि कुल आगम वक्र बिंदु O से B तक बढ़ रहा है| बिंदु B पर जब कुल आगम अधिकतम हो जाता है तब सीमांत आगम शून्य होता है| बिंदु B के पश्चात, कुल आगम वक्र नीचे की ओर गिरने लगता है| इसका अभिप्राय यह है कि वस्तु की अधिक इकाइयाँ बेचने पर भी कुल आगम कम होता जा रहा है| इस अवस्था में सीमांत आगम ऋणात्मक हो जाता है|
रेखाचित्र में औसत आगम वक्र AR तथा सीमांत आगम वक्र MR का ढलान नीचे की ओर होता है| इससे सिद्ध होता है कि उत्पादन की अधिक मात्रा के विक्रय करने के फलस्वरूप ने केवल औसत आगम बल्कि सीमांत आगम भी कम होता जाता है। उत्पादन की M इकाई का सीमांत आगम 0 हो गया है तथा उसे अगली इकाई का ऋणात्मक हो जाता है| जब औसत आगम तथा सीमांत आगम दोनों गिर रहे हैं तो सीमांत आगम, औसत आगम से कम होता हैसीमांत आगम धनात्मक, शून्य औरऋणात्मक हो सकता है, परंतु औसत आगम धनात्मक ही होता है| औसत आगम शून्य केवल उसी अवस्था में हो सकता है जब वस्तु फ्री में ही दी जाए। परंतु वास्तविक जीवन में ऐसा नहीं होता ।
विभिन्न बाजारों में पाए जाने वाले आगम वक्रों का तुलनात्मक अध्ययन
प्रतियोगिता के आधार पर बाजार तीन प्रकार के होते हैं
1-पूर्ण प्रतियोगिता-Perfect Competition
2-एकाधिकार-Monopoly
3-एकाधिकार प्रतियोगिता-Monopolistic Competition
1- पूर्ण प्रतियोगिता में आगम/संप्राप्ति वक्र-
पूर्ण प्रतियोगिता बाजार की वह स्थिति है जिसमें किसी समरूप वस्तु के बहुत से क्रेता तथा विक्रेता होते हैंपूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति में फर्म केवल बाजार कीमत पर ही अपने उत्पादन का विक्रय कर सकती हैंपूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति में फर्म की प्रत्येक इकाई की विक्रय कीमत समान होती हैपरिणामस्वरूप उसका सीमांत आगम तथा औसत आगम वक्र बराबर होता है जो कि उस वस्तु की कीमत भी होती है| (MR=AR=Priceइस बाजार में आगम वक्र OX अक्ष के समानांतर होता है|
इसे निम्न रेखाचित्र द्वारा भी समझाया जा सकता है
Revenue Curves in Perfect competition market, economics online class
Revenue Curves in Perfect competition market
रेखाचित्र में OX अक्ष पर उत्पादन तथा OY अक्ष पर आगम को दर्शाया गया हैरेखाचित्र में सीमांत आगम और औसत आगम DD द्वारा दर्शाए गये हैं जो कि OX अक्ष के समानांतर होता हैरेखाचित्र से ज्ञात होता है कि पूर्ण प्रतियोगी फर्म ₹5 प्रति इकाई की दर से कितना भी उत्पाद बेच सकती हैइसलिए फर्म का औसत आगम तथा सीमांत आगम वक्र पूर्णतया लोचदार होता हैपूर्ण प्रतियोगिता बाजार में फर्म ‘कीमत स्वीकारक’ होती हैपूर्ण प्रतियोगिता में कीमत रेखा के नीचे का क्षेत्र कुल आगम को दर्शाता है|
2- एकाधिकार में आगम/संप्राप्ति  वक्र-
एकाधिकार बाजार की वह स्थिति है जिसमें किसी वस्तु का केवल एक ही विक्रेता होता है| इस बाजार में फर्म ‘कीमत निर्धारक’ होती है क्योंकि उस वस्तु विशेष का उत्पादन सिर्फ वही फर्म करती है| इसलिए उसे अपनी इच्छानुसार कीमत निर्धारण करने की स्वतंत्रता होती है| एकाधिकार की अवस्था में औसत आगम वक्त तथा सीमांत आगम वक्त बाएं से दाएं नीचे की ओर गिरते हुए होते हैं|
इससे अभिप्राय यह है कि यदि एकाधिकारी वस्तु की अधिक मात्रा का विक्रय करना चाहता है तो उसे कीमत कम करनी पड़ेगीइसके विपरीत यदि एक अधिकारी वस्तु की अधिक कीमत लेना चाहता है तो वह कम मात्रा का विक्रय कर सकेगा। 
एकाधिकार बाजार की स्थिति में औसत आगम वक्र तथा सीमांत आगम वक्र को निम्न तालिका और रेखाचित्र द्वारा समझा सकते हैं
बिक्री की मात्रा
(Q)
कीमत या औसत आगम
(₹)
कुल आगम
(TR)
सीमांत आगम
(MR)
1
10
10
10
2
9
18
8
3
8
24
6
4
7
28
4
 Revenue Curves in Monopoly Market, economics online class
Revenue Curves in Monopoly Market
रेखाचित्र से ज्ञात होता है कि औसत आगम AR वक्र तथा सीमांत आगम MR वक्र सीधी रेखाएं हैं जो ऊपर से नीचे की ओर, बाएं से दाएं गिर रही हैं| एकाधिकार की स्थिति में बिक्री में वृद्धि होने के साथसाथ औसत आगम या कीमत कम होती जाती है| चूँकि कुल आगम घटती दर से बढ़ता है इसलिए बिक्री में वृद्धि होने के साथसाथ सीमांत आगम कम होता जाता है|
एकाधिकार की स्थिति में MR तथा AR वक्र अलगअलग होते हैं और सीमांत आगम, औसत आगम वक्र के नीचे होता है|
3- एकाधिकार प्रतियोगिता में आगम/संप्राप्ति वक्र-
एकाधिकार प्रतियोगिता बाजार की वह स्थिति है जिसमें किसी वस्तु के बहुत से विक्रेता तथा क्रेता होते हैं परंतु प्रत्येक विक्रेता द्वारा बेची जाने वाले वस्तु में दूसरे की तुलना में विभिन्नता पाई जाती हैयह विभिन्नता वस्तु के वजन, रंग, क्वालिटी, पैकिंग इत्यादि में हो सकती हैएकाधिकारी प्रतियोगिता की स्थिति में भी औसत आगम वक्र तथा सीमांत आगम वक्र बाएं से दाएं नीचे की ओर गिरते हुए होते हैं| यह वक्र एकाधिकार की स्थिति में पाए जाने वाले वक्रों के समान है| परंतु इन दोनों में मुख्य अंतर यह है कि एकाधिकारी प्रतियोगिता की अवस्था में AR,MR वक्र अधिक लोचदार होते हैंयह अंतर एकाधिकारी प्रतियोगी बाजार में स्थानापन्न वस्तु उपलब्ध होने की वजह से होता है|
इन्हें निम्न तालिका हो रेखा चित्र द्वारा दर्शाया जा सकता है
बिक्री की मात्रा
(Q)
कीमत या औसत आगम
(₹)
कुल आगम
(TR)
सीमांत आगम
(MR)
1
10
10
10
2
9.5
19
9
3
9
27
8
4
8.5
34
7
Revenue Curves in Monopolistic Competition, economics online class
Revenue Curves in Monopolistic Competition
रेखाचित्र से ज्ञात होता है कि एकाधिकारी प्रतियोगिता में AR व MR दोनों ही कम हो रहे हैं तथा MR वक्र AR के नीचे होता है। एकाधिकार की भांति एकाधिकारी प्रतियोगिता में भी AR वक्र और MR वक्र का ढलान नीचे की ओर होता है। परन्तु इनमें अंतर यह है कि एकाधिकारी प्रतियोगिता में AR और MR वक्र की एकाधिकार की तुलना में अधिक लोचदार होते हैंइसका कारण यह है कि एकाधिकारी उत्पाद का कोई स्थानापन्न नहीं होता जबकि एकाधिकारी प्रतियोगिता में उत्पाद के निकट स्थानापन्न उपलब्ध होते हैं|
एकाधिकार तथा एकाधिकार प्रतियोगिता की स्थिति में MR वक्र के नीचे का क्षेत्र फर्म के कुल आगम को दर्शाता है|
1- यदि प्रश्न में केवल कुल आगम/संप्राप्ति दिया गया हो-
इस स्थिति में औसत आगम ज्ञात करने के लिए कुल आगम को बिक्री की इकाइयों से भाग करके ज्ञात किया जाता है| तथा सीमांत आगम ज्ञात करने के लिए कुल आगम की अगली इकाई में से पिछली इकाई को घटा दिया जाता है |
2- यदि प्रश्न में केवल औसत आगम/संप्राप्ति दिया हो
इस स्थिति में सबसे पहले औसत आगम को उत्पादन की इकाइयों से गुणा करके कुल आगम को ज्ञात किया जाता है| इसके पश्चात कुल आगम की सहायता से सीमांत आगम को आसानी से ज्ञात किया जा सकता है|
इस स्थिति में सीमांत आगम की इकाइयों को क्रमशः जोड़कर सबसे पहले कुल आगम ज्ञात किया जाता हैइसके पश्चात कुल आगम को उत्पादन/बिक्री की इकाइयों से भागकर के औसत आगम आसानी से ज्ञात किया जा सकता है|

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