मुद्रा पूर्ति और उसके कार्य
परिचय :- प्रत्येक मनुष्य अपनी आवश्यकता को संतुष्ट करने के लिए एक दूसरे पर निर्भर रहता है इस आत्मनिर्भरता के फलस्वरूप वस्तुओं और सेवाओं का विनिमय होता है। प्राचीन काल में यह विनिमय वस्तुओं के रूप में हुआ करता था जिसे वस्तु विनिमय प्रणाली कहते थे लेकिन जैसे-जैसे आवश्यकताओं में विविधता आती गई वैसे-वैसे यह प्रणाली अकुशल सिद्ध होती गई ऐसी स्थिति में मनुष्य ने मुद्रा अर्थात एक ऐसे साधन का अविष्कार किया जिसे सामान्य रूप से विनिमय के साधन के रूप में स्वीकार किया जाने लगा आंरभ्भ में सोने व चांदी के सिक्के प्रचलित किए गए परन्तु धीरे-धीरे कागजी मुद्रा के साथ-साथ अन्य धातु के सिक्के भी प्रचलन के लिए जारी किए गए और वर्तमान समय में ऋण कार्ड (Credit Card) तथा साख कार्ड (Debit Card) के रूप में प्लास्टिक मुद्रा का युग है।
CBSE CLASS 11 MICRO ECONOMICS CHAPTER 1 INTRODUCTION MICRO ECONOMICS
वॉकर के अनुसार: “मुद्रा वह है जो मुद्रा का कार्य करें ” इसका अर्थ यह है कि मुद्रा शब्द का उपयोग किसी भी वस्तु के लिए किया जाना चाहिए जो मुद्रा का कार्य करता है। कुछ भी जो वस्तु और सेवा के बदले या कर्ज चुकाने में लोगों द्वारा आम तौर पर स्वीकार्य है।
मुद्रा की सबसे अधिक व्यापक परिभाषा प्रो0 क्राउथर ने दी है।
उनके अनुसार ‘‘कोई भी वस्तु जो समान्यतः विनिमय के साधन में रूप में स्वीकार की जाती है और साथ ही मूल्य के मापन और संचय का कार्य करती है उसे मुद्रा कहते है।‘‘
उपरोक्त समस्त परिभाषाओं के आधार पर हम मुद्रा की एक संतोषजनक परिभाषा दे सकते है।
मुद्रा वह वस्तु है जो कि व्यापक रूप से विनिमय कें माध्यम,मूल्य के मापक,पिछले ऋणों को चुकाने के लिए तथा मूल्य का संचय करने लिए समान्यतः निसंकोच स्वीकार की जाती है।
साधारण भाषा में ’मुद्रा’ से अभिप्राय उस वस्तु से है जो वस्तुओं के क्रय-विक्रय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। आधुनिक अर्थव्यवस्था में मुद्रा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है क्योकि मुद्रा के माध्यम से वस्तुओं का विनिमय सरलतापूर्वक किया जा सकता है। मुद्रा ने वस्तु विनिमय प्रणाली के दोषो को समाप्त करके मुद्रा प्रवाह ने विनिमय प्रणाली में अपना योगदान स्पष्ट किया है।
- इसमें सभी प्रकार के सिक्के, कागज के नोट, चेक, डिजिटल मनी, प्लास्टिक मनी आदि को मुद्रा के रूप में शामिल किया जाता हैं
- इसका उपयोग कुछ भी खरीदने के लिए किया जा सकता है क्योंकि यह कानूनी रूप से सभी द्वारा स्वीकार किया जाता है।
- यह दोहरे संयोग की समस्या को दूर करता है क्योंकि कोई भी व्यक्ति अपनी जरूरत की कोई भी चीज खरीद सकता है।
मुद्रा के प्रकार और उससे संबधित बातें
- कानूनी निविदा(वांछित) मुद्रा या आदेश मुद्रा : आदेश मुद्रा प्रतिनिधि अथवा प्रतीक मुद्रा है जो राज्य द्वारा निर्मित अथवा जारी की जाती है, परन्तु जिसे कानून द्वारा अपने अतिरिक्त किसी अन्य वस्तु से नहीं बदला जा सकता। यह वैध मुद्रा (Fiat Money or Legal Tender) होती है। जो कि सरकार के आदेश पर चलती है जैसे सिक्के और नोट्स। इस प्रकार की मुद्रा को लेना सभी के लिए कानूनन जरूरी होता है, कोई इसे लेने से मना नही कर सकता, यदि वो ऐसा करता है तो सीधे रूप से सरकारी आदेश की अवहेलना मानी जाती है और ऐसे व्यक्ति के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की जा सकती है। आदेश मुद्रा या वैध मुद्रा के दो रूप हे
- सीमित कानूनी निविदा मुद्रा : यह कानूनी मुद्रा का वह रूप है जिसका उपयोग एक निश्चित राशि तक के भुगतान के लिए प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए; सिक्के।
- असीमित कानूनी निविदा मुद्रा : यह कानूनी मुद्रा का वह रूप है जिसका उपयोग किसी भी राशि तक के भुगतान करने के लिए प्रयोग किया जा सकता है। कोई सीमा निर्धारित नहीं है। इसे पत्र मुद्रा (Currency Notes) भी कहते है सामान्य रूप से तो पत्र मुद्रा का अपना कोई मूल्य नही है जबकि सिक्के का अपना मूल्य (metal value) होता है; जैसे यदि एक सिक्के को पिघला दिया जाये तो उससे मिलने वाली धातु (metal) का अपना कुछ बाजार मूल्य होगा । पत्र मुद्रा का जो भी मूल्य होता है वह उस पर, भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर की शपथ (लिखे गए कथन) “मैं धारक को (जितने रुपये का नोट होता है) रुपये अदा करने का वचन देता हूँ” के कारण होता है | यदि गवर्नर की यह शपथ किसी नोट पर न लिखी हो तो वह नोट सिर्फ कागज का एक टुकड़ा होता है । पत्र मुद्रा को छापने का अधिकार भारतीय रिजर्व बैंक को है जबकि इस पर लिखी गयी राशि के भुगतान का अंतिम दायित्व भारत सरकार का होता है ।
उदाहरण: सभी मूल्यवर्ग (रु.2, रु.5, रु.10,रु.100,रु.500, रु.1000, रु.2000) के नोट ।
नोट : ₹1 का नोट रिजर्व बैंक जाती नहीं करता। उस भारत सरकार जारी करती है
- गैर वैधानिक मुद्रा (Non Legal Tender): इस तरह की मुद्रा सिर्फ व्यक्तिगत विश्वास पर चलती है अर्थात इस मुद्रा को स्वीकार करने के लिए किसी को बाध्य नही किया जा सकता है या कोई व्यक्ति यदि इस प्रकार की मुद्रा को लेने से मना कर देता है तो भी उसके खिलाफ कोई कानूनी कार्यवाही नही की जा सकती है।उदाहरण : साख मुद्रा, ड्राफ्ट, चेक, बिल, आदि।
- पूर्ण-काय मुद्रा:- वह मुद्रा जो सिक्कों के रूप में होती है। सिक्कों पर अंकित मूल्य के समान उसमें धातु लगी होती है। उदाहरण के लिए: सोने और चांदी के सिक्के।
- प्रतिनिधि मुद्रा (Representative Money): प्रतिनिधि मुद्रा उस मुद्रा को कहते हैं जो कि वास्तविक मुद्रा की तरह ही कार्य करे, जैसे प्रतिनिधि मुद्रा की सहायता से सोना या चांदी या कोई और जरुरत की चीज खरीदना। प्रतिनिधि मुद्रा में सिक्के, या प्रमाण पत्र को गिना जाता है।
- साख मुद्रा :- वह मुद्रा जिसका मौद्रिक मूल्य वस्तु के मूल्य से अधिक होता है जैसे:- (अ) सांकेतिक सिक्के (ब) प्रतिनिधि सांकेतिक सिक्के (स) केन्द्रीय बैंक द्वारा जारी प्रतिक्षा पत्र (ड) बैंको की जमा-राशि शामिल होती है।
- नजदीकी मुद्रा (Near Money): उस संपत्ति को जो ऐसे रूप में हो जिसे जल्दी तथा आसानी से मुद्रा में परिवर्तित किया जा सके; उन्हें समीपस्थ या नजदीक मुद्रा कहते हैं | उदाहरण: घर जमीन, सोना, चांदी आदि
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विश्वास आधारित मुद्रा (Fiduciary Money): ऐसी मुद्रा जो इसे जारी करने वाले अधिकारी या संस्था के द्वारा दिए गए विश्वास पर चलती है Fiduciary Money कहलाती है। उदाहरण: चेक या ड्राफ्ट क्योंकि ये विश्वास के आधार पर भुगतान के साधन के रूप में स्वीकार किए जाते हैं लेकिन सरकार के किसी आदेश के आधार पर नहीं।
- वस्तुगत मुद्रा (Commodity Money) का मतलब ऐसी मुद्रा से है, जिसका मूल्य उस वस्तु के आधार पर निर्धारित होता है, जिससे वह बनता हैl इस प्रणाली में वस्तु ही मुद्रा का कार्य करती है अर्थात ‘वस्तु’ ही मुद्रा है। उदाहरण के लिए, ऐसी वस्तुएं जिनका उपयोग विनिमय के माध्यमों के रूप में इस्तेमाल किया जाता है उनमें सोना, चांदी, तांबा, नमक, मिर्च, चावल, बड़े पत्थर आदि शामिल हैंl यह मुद्रा, वस्तु विनिमय प्रणाली में विद्यमान थी।भारत में मौद्रिक प्रणाली
- भारत में, मौद्रिक प्राधिकरण ‘भारतीय रिजर्व बैंक’ है।
- भारत में कागजी मुद्रा मानक का पालन किया जाता है।
- सिक्कों को सीमित कानूनी मुद्रा माना जाता है।
- भारत में करेंसी जारी करने का आरबीआई का एकाधिकार है।
- वित्त मंत्रालय भारत में 1 रुपये के सिक्के और नोट जारी करता है।
- भारत नोट जारी करने के लिए न्यूनतम आरक्षित प्रणाली का पालन करता है। इसका मतलब है कि आरबीआई को कम से कम रु. सिक्के और नोट जारी करने के लिए विश्व बैंक के पास 200 करोड़ रुपये सोना और विदेशी मुद्रा।
उच्च शक्ति वाला मुद्रा
- उच्च शक्ति वाला मुद्रा आरबीआई और सरकार द्वारा उत्पादित धन है।
- इसमें जनता द्वारा धारित मुद्रा और बैंकों द्वारा रखे गए नकद भंडार शामिल हैं।
- इसे प्रतीक द्वारा निरूपित किया जाता है।
- यह मुद्रा से अलग है क्योंकि मुद्रा में डिमांड डिपॉजिट होता है जबकि इसमें कैश रिजर्व शामिल होता है जो डिमांड डिपॉजिट बनाने के लिए आधार के रूप में कार्य करता है।
यदि मुद्रा अचानक समाप्त हो जाए तो उसका अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पडे़गा?
यदि मुद्रा का अचानक लोप हो जाता है तो वस्तु विनिमय प्रणाली आरभ्भ हो जाएगी जिसके कारण निम्न समस्याएं उत्पन्न होगी :-
आवश्यकताओं का दोहरा संयोग :- दोहरे संयोग से अभिप्राय वस्तुओं के लेन-देन को पूरा करने के लिए वस्तु विनिमय प्रणाली की शर्त से है जिसके अनुसार ऐसे व्यक्ति की तलाश की जाए जिसके पास वह वस्तु हो जिसकी आपकों जरूरत है और उस व्यक्ति को जिस वस्तु की जरूरत हो वह आपके पास हो। विनिमय मे माध्यम के रूप में मुद्रा के अविष्कार का उद्देश्य आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की कठिनाई को दूर करना था।
मूल्य के संचय में कठिनाई :- वस्तुओं में नाशवान होने का गुण पाया जाता है और वस्तुएं अधिक स्थान घेरती है ऐसी अवस्था में इन्हें अधिक मात्रा में इकट्ठा नहीं किया जा सकता इसके अलावा स्थगित भुगतान का मूल्य भी इन वस्तुओं के आधार पर नहीं चुकाया जा सकता है।
मूल्य का हस्तांतरण:- वस्तु विनिमय प्रणाली की एक अन्य कठिनाई यह है कि वस्तु का एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरण करना अर्थात मूल्य का स्थानान्तरण करना बहुत कठिन है मान लो एक व्यक्ति अपना मकान बेचकर दूसरे स्थान पर जाना चाहता है तो वह अपने मकान के बदले केवल वस्तुओं जैसे अनाज को प्राप्त करता है जिसे हस्तांतरित करना बहुत कठिन होता है ऐसी स्थिति में मूल्य हस्तांतण संभव नहीं।
उपरोक्त विवरण से यह बात स्पष्ट होती है कि मुद्रा यदि अचानक समाप्त हो जाती है तो उत्पादन तथा विनिमय प्रणाली निम्न कोटि की हो जाएगी और जीवन की गुणवत्ता का स्तर गिर जाएगा।
मुद्रा के कार्य:-
प्राथमिक कार्य :- इन्हे मुद्रा के प्रमुख या अनिवार्य कार्य भी कहते है इनके अन्तर्गत मुद्रा के उन सभी कार्यो को शामिल किया जाता है जो कि संसार के सभी देशो में पाये जातें है। ये कार्य निम्नलिखित है:-
विनिमय का माध्यम :- यह मुद्रा का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है आधुनिक अर्थव्यवस्था में वस्तुओं तथा सेवाओं के विनिमय में मुद्रा एक मध्यस्थ का कार्य करती है। मुद्रा के द्वारा सरलतापूर्वक किसी भी वस्तु का विनिमय किया जा सकता है विनिमय के माध्यम के रूप में मुद्रा ने वस्तु विनिमय प्रणाली की सबसे बडी कठिनाई ‘‘दोहरे संयोग‘‘ की कठिनाई को समाप्त कर दिया इसने वस्तुओं तथा सेवाओं के क्रय-विक्रय की क्रियाओं को अलग-अलग कर दिया जैसे यदि कोई व्यक्ति अपनी वस्तु को बेचना चाहता है तो वह मुद्रा के रूप में उसे बेच सकता है। इसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति वस्तुओं को खरीदना चाहता है तो मुद्रा के द्वारा वह ऐसा कर सकता है क्योंकि मुद्रा में सबसे अधिक तरलता का गुण पाया जाता है इसलिए वह कभी भी किसी वस्तु का रूप धारण कर सकती है।
मूल्य का मापन :- यह मुद्रा का प्रमुख कार्य है यह वस्तुओं के मूल्य मापन का कार्य करता है जिस प्रकार वजन मापने के लिए किलोग्राम, लम्बाई मापने के लिए मीटर, शरीर के तापमान को मापने के लिए थर्मामीटर का प्रयोग किया जाता है। उसी प्रकार वस्तुओं व सेवाओं का मुल्य मापने के लिए मुद्रा का प्रयोग किया जाता है मुद्रा की सहायता से वस्तुओ के मूल्य-अंतर के आधार पर दो वस्तुओं के बीच तुलना भी की जा सकती है। संक्षेप में आधुनिक अर्थव्यवस्था में मुद्रा वस्तुओं के मूल्य को मापने के लिए मुद्रा महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
2 गौण कार्य:-
संचय का आधार:- मुद्रा संचय का आधार है क्योंकि इसके द्वारा सम्पतियों का सरलतापूर्वक संचय किया जा सकता है मुद्रा में सम्पति की तुलना में अधिक तरलता होती है तरलता का अर्थ यह है कि मुद्रा को अन्य वस्तु के रूप में असानी से परिवर्तित किया जा सकता है। समान्यतः प्रत्येक वस्तु की कुछ आवयकताएं होती है इस प्रकार यदि कोई व्यक्ति वस्तुओं को खरीदना चाहता है तो मुद्रा के द्वारा वह ऐसा कर सकता है क्योंकि मुद्रा में सबसे अधिक तरलता का गुण पाया जाता है इसलिए वह कभी भी किसी वस्तु का रूप धारण कर सकती है।
स्थागित भुगतानो का आधार:- आधुनिक अर्थव्यस्था में मुद्रा पिछलें ऋणों को चुकाने के लिए भी महत्वपूर्ण योगदान देती है। पिछले ऋणों के भुगतानों के ब्याज को वस्तु की अपेक्षा मुद्रा के रूप में मापना अधिक सरल हो जाता है क्योंकि मुद्रा को निश्चित इकाइयों के रूप में आसानी से दिखाया जा सकता है।
उदाहरण के लिए :- एक वस्तु को 10 वर्षो के लिए उधार देने की अपेक्षा 1000 रूपयें देना उचित होगा।
मुद्रा ने उत्पादको, उपभोक्ताओं तथा सरकार के लिए बाजार से ऋण लेना आसान कर दिया है मुद्रा के कारण ही शेयर्स बोंड्स तथा प्रतिभूतिओ का क्रय-विक्रय संभव हो सका है। मुद्रा के इस कार्य के कारण ही मुद्रा बाजार और पूंजी बाजार का इतना अधिक विकास हो सका है।
मूल्य का हस्तांतरण :- मुद्रा का एक महत्वपूर्ण सहायक कार्य यह भी है कि मुद्रा मूल्य के हस्तांरण का कार्य करती है। मुद्रा की सहायता से मूल्य को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तथा एक स्थान से दूसरे स्थान तक हस्तांतरित करना बहुत सरल होता है क्योंकि मुद्रा प्रत्येक समय और हर स्थान पर आसानी से स्वीकार की जाती है मुद्रा की सहायता से इन हस्तांतरणो को कम समय में कुषलतापूर्वक आसानी से सम्पन्न किया जा सकता है जबकि वस्तुओं का हस्तांतरण करना बहुत कठिन होता है लेकिन मुद्रा के द्वारा सभी वस्तुओं का हस्तांतरण सफलतापूर्वक हो सकता है।
- अगत्यात्मक कार्य :- मुद्रा के वे कार्य जो केवल अर्थव्यवस्था का संचालन करते है। वे अर्थव्यवस्था में संवृद्धि तथा विकास की उंची दर प्राप्त करने के लिए प्रेरित नहीं करते।
जैसेः- मुद्रा के प्राथमिक तथा गौण कार्य। - गत्यात्मक कार्य:- मुद्रा के वे कार्य जो अर्थव्यवस्था को स्थायित्व प्रदान करते है तथा अर्थव्यवस्था को संवृद्धि तथा विकास के उंचे स्तर पर ले जाते है। जैसेः- मुद्रा की पूर्ति का विस्तार करना जिससे मंदी को दूर किया जाता है।
मुद्रा की पूर्ति
एक निश्चित समय में समाज के लोगों के पास जो एक देश की घरेलू सीमा के अन्दर रहते है उनके पास रखे मुद्रा के स्टाॅक को मुद्रा की पूर्ति कहते है मुद्रा की पूर्ति, सरकार, केन्द्रीय बैक तथा व्यापारिक बैंक करते है। भारत में सरकार का वित्त मंत्रालय एक रूपये के नोट और सभी प्रकार के सिक्के जारी करता है। इसके अलावा रिजर्व बैंक अन्य सभी मुद्राओं को जारी करता है लेकिन उसके लिए रिजर्व बैंक को न्यूनतम 200 करोड रू का सोना तथा सिक्के और विदेशी परिसम्पतियों को कोष में रखना होता है जिसमें 115 करोड़ का केवल सोना होना आवश्यक है।
मुद्रा आपूर्ति :- यह किसी अर्थव्यवस्था में किसी विशेष समय पर जनता द्वारा रखे गए धन के कुल स्टॉक को संदर्भित करता है। यह एक स्टॉक अवधारणा है क्योंकि इसे एक विशेष समय पर मापा जाता है।
मुद्रा आपूर्ति के घटक :-
क) जनता के पास मुद्रा (कागज के नोट और सिक्के) (बैंकों के बाहर)
बी) (शुद्ध ) वाणिज्यिक बैंकों के पास जनता की मांग जमाएं
मुद्रा आपूर्ति के मापक (अधिकतर तरल रूप)
M1= C (जनता के पास मुद्रा ) + DD (वाणिज्यिक बैंकों के पास शुद्ध मांग जमा)
जनता के पास मुद्रा और सिक्के: इसमें जनता के पास कागज के नोट और सिक्के होते हैं जिनका कानूनी रूप से ऋण या अन्य दायित्वों के भुगतान के लिए उपयोग किया जा सकता है।
वाणिज्यिक बैंकों की मांग जमा: मांग जमा वाणिज्यिक बैंकों की जमा राशि है जिसमें से जमाकर्ता द्वारा चैक का उपयोग करके मांग पर पैसा निकाला जा सकता है।
केवल भारत के मामले में : – C + DD + OD (केवल भारत के मामले में आरबीआई के साथ अन्य जमा)
- RBI के पास अन्य जमा: – इसमें विदेशी बैंकों और सरकारों, विश्व बैंक, IMF , आदि की ओर से RBI द्वारा रखी गई जमा राशि शामिल है। हालांकि, इसमें RBI के पास भारत सरकार और वाणिज्यिक बैंकों की जमा राशि शामिल नहीं है।
नोट :-
मांग जमा के अलावा ऐसी सावधि जमाएं होती हैं जिनकी एक निश्चित अवधि या परिपक्वता अवधि होती है जिसके बाद उन्हें निकाला जा सकता है। जैसे: सावधि जमा।
- केंद्रीय बैंक द्वारा जारी की गई मुद्रा को जनता या वाणिज्यिक बैंकों द्वारा धारण किया जा सकता है और इसे ‘उच्च शक्ति वाला धन’ या ‘आरक्षित धन’ या ‘मौद्रिक आधार’ कहा जाता है।
- मांग जमाए वाणिज्यिक बैंकों द्वारा बनाए जाते हैं और इन्हें बैंक मनी कहा जाता है।
अब विस्तार से :-
मुद्रा की पूर्ति के घटक:-
मुद्रा पूर्ति का आरम्भिक माप :- 1961 में “ FIRST WORKING GROUP’’ की सिफारिषों के अनुसार 1961-68 तक मुद्रा पूर्ति का केवल एक माप होता था जिसके लिए M1 सूचक शब्द का प्रयोग किया जाता था।
M1 निम्न तत्वों पर आधारित होती थी:-
M1= जनता के पास करेंसी (C ) मांग जमांए (DD ) रिजर्व बैंक के पास अन्य जमाएं (OD )
C = जनता के पास करेंसी जिसमें कागजी नोट तथा सिक्के शामिल है।
नोट:- सिक्कों को सीमित ग्राह्य मुद्रा तथा कागजी नोट असीमित ग्राह्य मुद्रा कहलाताी है।
DD = जनता के पास मांग जमांए जो व्यापारिक बैकों में जमा होती है जिन्हें मांगने पर चैक द्वारा निकलवाया जा सकता है
OD = इसमें निम्न को शामिल किया जाता है:-
A रिजर्व बैंक के पास सार्वजनिक वितिय संस्थाओं की जमाएं जैसे:- IDBI
B रिजर्व बैंक के पास केन्द्रीय विदेषी बैंक की जमाएं और सरकार की जमाएं
C अंतराष्ट्रीय वितिय संस्थाओं की जमाएं जैसे:- विश्व बैंक की जमाएं
2 1967-68 से मुद्रा पूर्ति के माप :- 1967-68 से रिजर्व बैंक ने M1 के साथ सामूहिक मुद्रा साधन (AMR) की एक नई अवधारणा और बनाई जिसकें अंतर्गत व्यापक स्तर पर मुद्रा पूर्ति का माप प्रस्तुत किया जाने लगा इसमें M1 में डाकखानें के बचत खातों में जमाओं को शामिल कर लिया गया।
M2 = M1 + डाकखानें के बचत खातों में जमाएं
यह मुद्रा पूर्ति का एक व्यापक मापदंड है M1 की तुलना में
नोट:– M1तथा M2 को संकुचित मुद्रा पूर्ति कहते हैं।
3 1977 से प्रचलित वर्तमान मुद्रा के माप:-
“The Second Working Group (SWG)” अप्रैल 1977 से मुद्रा के प्रचलित मापों में परिवर्तन किया गया अब दो मापों के स्थान पर मुद्रा पूर्ति को चार मापों M1, M2, M3, M4 के आधार पर मापा जाता है जो निम्न प्रकार से है:-
M3 =M1 + व्यापारिक बैंकेा की निवल सावधि जमाएं
यह अवधारणा M1की तुुलना में व्यापक है क्योकि इसमें कुल मौद्रिक साधनोें को शामिल किया जाता है।
नोट:- इसे कुल मौद्रिक साधन भी कहते हैं।
M4 = M3 डाकघर बचत संगठनों में समस्त जमाएं (NSC को छोड़कर)
M4 सबसे अधिक व्यापक अवधारणा है। इसमें M3 के अलावा डाकघर के सभी जमाओं को शामिल किया जाता है राष्ट्रीय बचत पत्र को छोड़कर
नोट:- मुद्रा पूर्ति के उत्पादक भारत सरकार,केन्द्रिय बैंक व वाणिज्य बैकों केा माना जाता है। M3 तथा M4 को विस्तृत मुद्रा पूर्ति कहते हैं।