अर्थशास्त्र का परिचय (Micro Economics)

अर्थव्यवस्था
अर्थव्यवस्था उत्पादन इकाइयों के पूरे संग्रह को संदर्भित (दर्शाता) करती है जिसके द्वारा लोग अपना जीवन यापन करते हैं।
अर्थशास्त्र
अर्थशास्त्र इस अध्ययन को संदर्भित करता है कि कैसे एक समाज अपने सीमित संसाधनों का उपयोग करना चुनता है, जिनके वैकल्पिक उपयोग होते हैं, वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करने के लिए और असीमित मानव आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उन्हें लोगों के विभिन्न समूहों के बीच वितरित करने के लिए।

 या

अर्थशास्त्र -:अर्थशास्त्र मनुष्य  कि उन आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन करता है जिसमें दुर्लभ साधनों (श्रम, भूमि, पूंजी उद्यमी) का प्रयोग किया जाता है ताकि मानव कि असीमित आवष्यकताओं को संतुष्ट  किया जा सके और उत्पादक को लाभ प्राप्त हो, समाज का कल्याण हो 
अर्थशास्त्र दो शब्दो  से मिलकर बना है ’अर्थ’ इसका अभिप्राय धन से है जबकि शास्त्र  से अभिप्राय ‘विज्ञान’ से है इस प्रकार ‘अर्थशास्त्र धन का विज्ञान‘है।                                     या

यह दुर्लभ संसाधनों के इस प्रकार आवंटन से संबंधित एक सामाजिक विज्ञान है जिसमे उपभोक्ता को अधिकतम संतुष्टि की प्राप्ति हो , उत्पादक अपने लाभ को अधिकतम कर सकते हैं और समाज अपने  कल्याण को अधिकतम कर सकता है।
अर्थशास्त्र की अनेक परिभाषाएँ दी गई जो इस प्रकार से है:-
(1) धन सम्बन्धी परिभाषा :- सबसे पहले  1776 में ‘एडम स्मिथ’ नामक अर्थशास्त्री ने अर्थशास्त्र पर अपनी पहली पुस्तक “An Enquiry into the Nature Wealth of Nation” अर्थशास्त्र राष्ट्र के धन की प्रकृति और कारणों की खोज है|  लिखी। एडम स्मिथ ने ऐसे आर्थिक मनुष्य  की कल्पना की जिसका उद्देश्य  केवल धन कमाना था। उनके अनुसार समस्त आर्थिक क्रियाएँ केवल धन कमाने के लिए सम्पन्न की जाती है। इसीलिए एडम स्मिथ ने अर्थशास्त्र को धन का विज्ञान माना, इन्हें अर्थशास्त्र का जन्मदाता भी कहते हैै।

(2) कल्याण संबन्धी परिभाषा :- इस परिभाषा का प्रतिपादन प्रो॰ मार्शल ने किया उन्होने सन् 1890 में ‘‘प्रिंसिपल ऑफ  इकोनोमिक्स‘‘ नामक पुस्तक लिखी। उनके अनुसार मनुष्य द्वारा सम्पन्न की जाने वाली समस्त आर्थिक क्रियाओं का उद्देष्य धन कमाना नहीं होता बल्कि मानव कल्याण करना होता है, धन तो केवल साधन मात्र है जबकि ‘साध्य’ (Motive) मानव कल्याण है।
(3) दुर्लभता सम्बन्धि परिभाषा :- इस परिभाषा का प्रतिपादन करने का श्रेय ‘प्रो॰ रोबिन्सन’ को जाता है। उनके द्वारा यह परिभाषा सन् 1932 में दी गई उनके अनुसार उत्पादन के साधन दुर्लभ है जबकि मानवीय आवष्यकताएं असीमित है इन संसाधनो का कुशलतम  प्रयोग करना ही अर्थशास्त्र  है।
(4) विकास संबन्धी परिभाषा :- इस परिभाषा को प्रतिपादित किया ‘प्रो॰ पीटरसन और सेम्यूल्सन‘ ने। उनके अनुसार अर्थशास्त्र  उन समस्त आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन करता है जिनका उद्देष्य मानवीय आवष्यकताओं को संतुष्ट   करना तथा जनता का कल्याण करना हैं। इन दोनों ने यह बात स्पष्ट  की कि उपरोक्त सभीपरिभाषाएं  सही है। लेकिन इनके साथ मानवीय और प्राकृतिक संसाधनों का विकास अनिवार्य है।

नोट :- प्राकतिक संसाधन जैसे :- कोयला, पैट्रोल  

दुर्लभता से क्या अभिप्राय है इसका चयन के साथ क्या संबंध  है?

दुर्लभता:- दुर्लभता से अभिप्राय है मांग की तुलना में  संसाधनों का कम होना है अन्य शब्दों  में ”किसी पदार्थ की मांग की तुलना में पूर्ति का कम होना दुर्लभता कहलाता है”

दुर्लभता और चयन में संबंध:- दुर्लभता और चयन एक दूसरे के पूरक है। दुर्लभता के कारण ही चयन की समस्या होती है अर्थात दुर्लभता ही जननी है चयन की। हम दो उदाहरणों के आधार पर इसे स्पष्ट  कर सकते है:-
(1) दुर्लभता का अर्थ है सीमित आय और चुनाव का अर्थ है चयन। इस सीमित आय को वस्तुओं और सेवाओं पर इस प्रकार व्यय किया जाए ताकि आधिकतम संतुष्टि  प्राप्त हो। यह चुनाव द्वारा ही संभव हैै।
(2) दुर्लभता का अर्थ सीमित साधन जबकि चुनाव का अर्थ सीमित साधन का बंटवारा। इनका बंटवारा इस प्रकार किया जाना चाहिए ताकि अधिकतम लाभ प्राप्त हो।
अतः इस प्रकार स्पष्ट  होता है कि दुर्लभता ही जननी है चयन की।

आर्थिक क्रियाओं से आप क्या समझते हो? इसके प्रकार बताइए?

आर्थिक क्रियाएँ:- वे क्रियाएं जो मानव आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए दुर्लभ संसाधनों के उपयोग पर आधारित है या उससे संबंधित है।जिनका उद्देश्य  धन कमाना होता है वे समस्त क्रियाएं आर्थिक क्रियाएं कहलाती है।
इन क्रियाओं को निम्न   भागों में बांटा गया है:-
उत्पादन :- निश्चित  समय में उत्पत्ति के समस्त साधनों की सहायता से जिन भौतिक पदार्थो का निर्माण किया जाता है या पूर्ति की जाती है उसे उत्पादन कहते है। जैसेः- मशीन  गेहूँ आदि।
                                                                                                      या
उत्पादन से अभिप्राय उन क्रियाओं से है जिसमें लोगों की आवश्कताओ की पूर्ति के लिए वस्तुओं और सेवाओं का निर्माण किया जाता और उसे  विनिमय योग्य बनाया जाता है। उत्पादन मुख्य रुप से दो वस्तुओं का किया जाता है:-

1. उपभोक्ता वस्तु    2. उत्पादक वस्तु

यह वस्तुओं  को बनाने या पहले से उत्पादित वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि करने की एक प्रक्रिया है।
उपभोग:- मनुष्य  द्वारा अपनी इच्छाओं को संतुष्ट करने के लिए वस्तुओ और सेवाओं का  प्रयोग करना उपभोग कहलाता है। उपभोग समस्त आर्थिक क्रियाओं का अंत है। इसमें भी मुख्य रूप से दो प्रकार की वस्तुओं को शामिल  किया जाता है:-
1. एकल उपयोगी वस्तु 2. टिकाऊ वस्तु
निवेश :- बचत का वह भाग जिसे पुनः (दोबारा) उत्पादन में लगा दिया जाता है उसे निवेश कहते है। निवेश के कारण ही अधिक से अधिक वस्तुओं का निर्माण होता है।

                                                                 या

इसका अर्थ है भविष्य के उत्पादन के लिए वस्तुओ  (जैसे उपकरण और मशीनरी) का उपयोग करना।.

विनिमय:  यह वस्तुओं और सेवाओं की बिक्री और खरीद को संबधित   है
अर्थशास्त्र की मान्यताए:-
1.मनुष्य  एक विवेकशील  प्राणी है 2. अन्य बातें समान रहने पर
निम्न पर टिप्पणी :- 
व्यष्टि  अर्थशास्त्र :- व्यष्टि  अर्थशास्त्र  व्यक्तिगत स्तर की आर्थिक समस्याओं का अध्ययन करता है जैसे एक व्यक्ति,एक फर्म, एक उद्योग

समष्टि  अर्थशास्त्र :-समष्टि अर्थशास्त्र में सम्पूर्ण अर्थव्यस्था के स्तर पर आर्थिक सम्बन्धों अथवा आर्थिक समस्याओं का अध्ययन किया जाता है। उदाहरण:- बेरोजगारी की समस्या, मुद्रा स्फीति की दर, राष्ट्रीय आय

व्यष्टि (सूक्ष्म) अर्थशास्त्र और समष्टि अर्थशास्त्र के बीच अंतर

व्यष्टि (सूक्ष्म) अर्थशास्त्र समष्टि अर्थशास्त्र
यह अर्थशास्त्र की वह शाखा है जो किसी अर्थव्यवस्था की व्यक्तिगत आर्थिक इकाइयों के व्यवहार का अध्ययन करती है। यह अर्थशास्त्र की वह शाखा है जो समग्र रूप से अर्थव्यवस्था के समुच्चय के व्यवहार का अध्ययन करती है।
इसके मुख्य उपकरण मांग और आपूर्ति हैं इसके मुख्य उपकरण समग्र मांग और समग्र आपूर्ति हैं।
इस सिद्धांत का मूल उद्देश्य ‘मूल्य(कीमत) निर्धारण’ है। इस सिद्धांत का मूल उद्देश्य ‘राष्ट्रीय आय और रोजगार का निर्धारण’ है।
इसे ‘मूल्य सिद्धांत’ भी कहा जाता है। इसे ‘आय और रोजगार का सिद्धांत’ भी कहा जाता है
सूक्ष्मअर्थशास्त्र अध्ययन के उदाहरण:-
(i) किसी वस्तु के लिए व्यक्ति या बाजार की मांग (या आपूर्ति) का अध्ययन।
(ii) किसी वस्तु का मूल्य निर्धारण।
सूक्ष्मअर्थशास्त्र अध्ययन के उदाहरण:-
(i) अर्थव्यवस्था में आय और रोजगार का अध्ययन।
(ii) अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति की दर या सामान्य मूल्य स्तरों का अध्ययन।

• व्यष्टि अर्थशास्त्र और समष्टि अर्थशास्त्र की निर्भरता :-
व्यष्टिअर्थशास्त्र समष्टि अर्थशास्त्र पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए, किसी वस्तु की मांग अर्थव्यवस्था में प्रचलित कराधान नीतियों से प्रभावित होती है। इसी प्रकार, समष्टि अर्थशास्त्र सूक्ष्मअर्थशास्त्र पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय आय एक वित्तीय वर्ष में एक अर्थव्यवस्था के सभी निवासियों द्वारा अर्जित कुल कारक आय का योग है।

वास्तविक अर्थशास्त्र :- वास्तविक आर्थिक विश्लेषण  उन मुद्दो को दर दर्शाता  है जिनकों तथ्यो कि सहायता से प्रमाणित किया जा सकता है। इसमें क्या है और क्या था बातो का अध्ययन किया जाता है  उदाहरण:- एक देश  में 25 प्रतिशत  जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे है यह प्रमाणित किया जा सकता है
आदर्शात्मक अर्थशास्त्र :- आदर्शात्मक आर्थिक विश्लेषण उन आर्थिक मुद्दो को दर्शाता है जिनको तथ्यो की सहायता से प्रमाणित नहीं किया जा सकता इसलिए इसकी प्रकृति सुझावात्मक है। इसमें क्या होना चाहिए  बातो का अध्ययन किया जाता है उदाहरणः– किसानो को अपने निवेश  पर अच्छे प्रतिफल मिलने के लिए सरकारी सहायता दी जानी चाहिए।

सकारात्मक और सामान्य अर्थशास्त्र के बीच अंतर

सकारात्मक अर्थशास्त्र/वास्तविक अर्थशास्त्र सामान्य अर्थशास्त्र/आदर्शात्मक अर्थशास्त्र
सकारात्मक अर्थशास्त्र ‘क्या है’ से संबंधित है और आर्थिक तथ्यों का एक बयान है। मानक अर्थशास्त्र ‘क्या होना चाहिए’ या ‘क्या होना चाहिए’ से संबंधित है।
यह तथ्यों पर आधारित है और वास्तविक आंकड़ों का उपयोग करके सत्यापित किया जा सकता है यह तथ्यों पर आधारित नहीं है और वास्तविक डेटा का उपयोग करके सत्यापित नहीं किया जा सकता है।
इसमें समाधान  शामिल नहीं है इसलिए प्रकृति में सुझाव देने की  नहीं है। इसमें समाधान शामिल हैं, इसलिए प्रकृति में सुझाव देने है।
उदाहरण:
(i) भारत में मूल्य स्तर बढ़ रहे हैं।
(ii) भारत में बेरोजगारी की उच्च दर है।
उदाहरण:
(i) बेरोजगारी दर को कम किया जाना चाहिए।
(ii) मुद्रास्फीति की दर को कम करने के लिए सरकार को अपना खर्च कम करना चाहिए

अवसर लागत:– किसी कार्य करते समय अनेक वैकल्पिक क्रियाओ का त्याग किया जाता है त्यागे गए विकल्पों में से  सर्वश्रेठ विकल्प का त्याग ही उस कार्य  की अवसर लागत होती है उदाहरण:- यदि राम के पास रोजगार के 3 विकल्प 1. 5000रू 2. 6000रू 3. 7000रू तो राम सर्वश्रेठ  विकल्प 3 का चुनाव करता है जिससे 7000 रू प्रतिमाह प्राप्त होते है। उसकी अवसर लागत 6000रू0 प्रतिमाह होगी। यही उसका सर्वश्रेठ  विकल्प था ।

अवसर लागत:-
अवसर लागत को अगले विकल्प के सर्वोत्तम मूल्य के रूप में परिभाषित किया गया है।

किसी वस्तु की अवसर लागत वह लागत है जिसे उसे चुनने के लिए विभिन्न विकल्पों में से सर्वश्रेश्ठ विकल्प का त्याग करना पडता है। प्रो0 लिप्सी के अनुसार किसी साधन के प्रयोग करने की अवसर लागत अन्य वस्तु की वह मात्रा है जिसका त्याग करना पडता है जैसेः- 50 रू से हम एक इंडिया पाकिस्तान मैच का टिकट,रेस्टोरेंट  का खाना,सिनेमा हाॅल में फिल्म आदि को छोडकर अर्थशास्त्र की पुस्तक खरीदते है तो इन सब में से अच्छा विकल्प रेस्टोरेन्ट में खाना खाने का त्याग करना ही हमारी अवसर लागत है।
नोटः- इसे वैकल्पिक लागत भी कहते है।

सीमांत अवसर लागत: सीमांत अवसर लागत, वस्तु -X  की एक अतिरिक्त इकाई के उत्पादन के लिए वस्तु -Y के उत्पादन  में होने वाले त्याग को दर्शाती   है, उपलब्ध संसाधन और प्रौद्योगिकी में कोई परिवर्तन नहीं होता है

\frac{\Delta loss of x- goods}{\Delta gain of y- goods}

सीमांत अवसर लागत: वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई का उत्पादन करने के लिए दूसरी वस्तु के उत्पादन में किए त्याग का अनुपात सीमांत अवसर लागत है, जब संसाधन और प्रौद्योगिकी स्थिर होती है।

 चयन की समस्या या आर्थिक समस्या  से क्या अभिप्राय है? यह क्यों उत्पन्न होती है?

 अर्थिक समस्या:- चयन की समस्या ही अर्थिक समस्या है।
यह निम्न कारणों से उत्पन्न होती है:-
1. मनुष्य की आवष्यकताएं असीमित है।
2. इन आवष्यकताओं को पूरा करने वाले साधन सीमित है।
3. इन साधनों के वैकल्पिक प्रयोग संभव है।

आर्थिक समस्या
आर्थिक समस्या’  चयन की समस्या है जिसमें वैकल्पिक उपयोग वाले सीमित संसाधनों में से असीमित आवश्यकताओं की संतुष्टि शामिल है। सभी आर्थिक समस्याओं का मूल कारण ‘दुर्लभता’ है।
अर्थशास्त्र में  ‘दुर्लभता’ से तात्पर्य किसी वस्तु की मांग के संबंध में आपूर्ति का काम होने से है।

आर्थिक समस्या के कारण:-
आर्थिक समस्या इसलिए उत्पन्न होती है क्योकि :

(a) संसाधनों की सीमित है  (b) मानवीय आवश्यकताएं असीमित है और (c) संसाधनों का वैकल्पिक उपयोगसंभव है
1. संसाधनों की कमी: संसाधनों की आपूर्ति (अर्थात भूमि, श्रम, पूंजी, आदि) उनकी मांग के संबंध में सीमित है और अर्थव्यवस्था वह सब कुछ पैदा नहीं कर सकती जो लोग चाहते हैं। यह सभी अर्थव्यवस्थाओं  के संसाधनो में उपलब्ध हैं इसलिए  आर्थिक समस्याओं  का मूल ये कारण है। ये संसाधन बड़ी या छोटी, विकसित या अविकसित हर अर्थव्यवस्था में सीमित मात्रा में उपलब्ध हैं। दुनिया की कोई भी अर्थव्यवस्था सभी संसाधनों से समृद्ध नहीं है। संसाधनों की कमी न होती तो कोई समस्या नहीं होती।

2. असीमित मानवीय  आवश्यकताएँ: मानव की इच्छाएँ कभी समाप्त नहीं होती हैं, अर्थात वे कभी भी पूरी तरह से संतुष्ट नहीं हो सकते हैं। एक इच्छा की पूर्ति होते ही दूसरी नई इच्छा उत्पन्न हो जाती है। लोगों की जरूरतें असीमित होती हैं और बढ़ती रहती हैं और सीमित संसाधनों के कारण संतुष्ट नहीं हो पाती हैं। मानवीय आवश्यकताएँ भी प्राथमिकताओं में भिन्न होती हैं, अर्थात सभी आवश्यकताएँ समान तीव्रता की नहीं होती हैं। प्रत्येक व्यक्ति के लिए, कुछ आवश्यकताएँ दूसरों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण और आवश्यक होती हैं। इसलिए, लोग अपनी कुछ जरूरतों को पूरा करने के लिए अपने संसाधनों को वरीयता के क्रम में आवंटित करते हैं।

3. संसाधनों का वैकल्पिक उपयोग: संसाधन न केवल दुर्लभ हैं, बल्कि उन्हें विभिन्न उपयोगों में भी लगाया जा सकता है। यह संसाधनों के बीच चुनाव को अधिक महत्वपूर्ण बनाता है। उदाहरण के लिए, भूमि का उपयोग खेती के लिए किया जा सकता है, एक कारखाना या एक स्कूल आदि स्थापित करने के लिए। परिणामस्वरूप, अर्थव्यवस्था को दिए गए दुर्लभ संसाधनों के वैकल्पिक उपयोग के बीच चयन करना पड़ता है। यदि एक संसाधन को केवल एक ही उपयोग में लाया जा सकता है, तो चुनाव की कोई समस्या नहीं होगी।

संसाधनों की दो विशेषताएं:
a) संसाधन दुर्लभ और सीमित हैं। b) संसाधनों के वैकल्पिक उपयोग होते हैं।

मानवीय आवश्यकताएँ की दो विशेषताएं  है:
a) वे असीमित हैं, यानी वे कभी भी पूरी तरह से संतुष्ट नहीं हो सकते।
b) मानवीय आवश्कताएँ प्राथमिकताओं में भिन्न होती  है। कुछ आवश्यकताएँ अधिक बुनियादी और अत्यावश्यक होती हैं और उन पर  दूसरों की तुलना में तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता हो सकती है।

एक अर्थव्यवस्था की केंद्रीय समस्याओं से आप क्या समझते हो? यह क्यों उत्पन्न होती है?

उत्तर:- एक अर्थव्यवस्था की केंद्रीय समस्याएं:-
संसाधनों के आवंटन की समस्या: प्रत्येक अर्थव्यवस्था को दुर्लभ साधनो के आवंटन की समस्या का सामना करना पड़ता है चाहे अर्थव्यवस्था भारत जैसी अल्पविकसित हो या अमेरिका जैसी विकसित प्रत्येक अर्थव्यवस्था में यह समस्या पायी जाती है क्योंकि प्रत्येक अर्थव्यवस्था की आवश्यकताएँ असीमित व साधन सीमित है जिसके कारण प्रत्येक अर्थव्यवस्था को साधनों का चुनाव करना पड़ता है। साधनों के इसी आबंटन की समस्या को केन्द्रीय समस्या कहते है।
केंद्रीय समस्याएं हर अर्थव्यवस्था के सामने आने वाली आर्थिक समस्याएं हैं। एक अर्थव्यवस्था को उत्पादित होने वाली  विभिन्न सम्भावनाओं में से चयन के बाद अपने दुर्लभ संसाधनों को आवंटित करना होता है, उत्पादन की तकनीक का चयन करना होता है और यह भी तय करना होता है कि इस प्रकार उत्पादित उत्पादन को अर्थव्यवस्था में कैसे वितरित किया जाना चाहिए।
एक अर्थव्यवस्था के सामने आने वाली केंद्रीय समस्याओं को तीन भागो में वर्गीकृत  किया जा सकता है:-

 चाहे अर्थव्यवस्था भारत जैसी अल्पविकसित हो या अमेरिका जैसी विकसित प्रत्येक अर्थव्यवस्था में यह समस्या पायी जाती है क्योंकि प्रत्येक अर्थव्यवस्था की आवश्यकता  असीमित व साधन सीमित है जिसके कारण प्रत्येक अर्थव्यवस्था को साधनों का चुनाव करना पड़ता है। साधनों के इसी आबंटन (बटवारे) की समस्या को केन्द्रीय समस्या कहते है।
अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याएं (Central Problems of an Economy) :-
(1) क्या उत्पादन किया जाएं:- यह अर्थव्यवस्था की मूलभूत पहली केन्द्रीय समस्या है इसमें अर्थव्यवस्था को यह निर्णय लेना होता है कि ‘‘ किस वस्तु का उत्पादन किया जाए और कितनी मात्रा में किया जाए‘‘ 

क्या उत्पादन किया जाए (क्या उत्पादन करना है और कितनी मात्रा में ):-
इस समस्या में उत्पादित होने वाली वस्तुओं और सेवाओं का चयन और प्रत्येक चयनित वस्तु की कितनी मात्रा का उत्पादन शामिल है। यह इस कारण से उत्पन्न होती  है क्योंकि एक अर्थव्यवस्था में संसाधन सीमित होते हैं और उन्हें वैकल्पिक उपयोग में लाया जा सकता है।
• एक वस्तु का अधिक उत्पादन करने का आमतौर पर मतलब है कि अन्य वस्तुओं के उत्पादन के लिए कम संसाधन उपलब्ध होंगे। उदाहरण के लिए, समान संसाधनों का उपयोग करके अन्य वस्तुओं के उत्पादन को कम करके ही अधिक कारों का उत्पादन संभव है।
• असैन्य वस्तुओं के उत्पादन को कम करके ही अधिक युद्ध सामग्री का उत्पादन संभव है। अतः विभिन्न वस्तुओं के महत्व के आधार पर एक अर्थव्यवस्था को यह निर्णय करना होता है कि किस वस्तु का उत्पादन कितनी मात्रा में और किस मात्रा में किया जाए।

  • उदाहरण के लिए:- यदि अर्थव्यवस्था भारत जैसी अल्पविकसित हो तो वह खाद्यान्न वस्तु का उत्पादन अधिक करेगी लेकिन यदि अर्थव्यवस्था अमेरिका जैसी विकसित है तो पूंजीगत वस्तु का उत्पादन अधिक मात्रा में करेगी।
    • ‘क्या उत्पादन करें’ की समस्या के दो पहलू हैं:

(i) किन संभावित वस्तुओं का उत्पादन करना है: एक अर्थव्यवस्था को यह तय करना होता है कि कौन सी उपभोक्ता वस्तुओं (चावल, गेहूं, कपड़े, आदि) और कौन सी पूंजीगत वस्तुओं (मशीनरी, उपकरण, आदि) का उत्पादन किया जाना है। उसी तरह, अर्थव्यवस्था को नागरिक सामान (रोटी, मक्खन, आदि) और युद्ध के सामान (बंदूकें, टैंक, आदि) के बीच चयन करना पड़ता है।
(ii) कितना उत्पादन करना है: उत्पादित होने वाली वस्तुओं को तय करने के बाद, अर्थव्यवस्था को प्रत्येक वस्तु की मात्रा तय करनी होती है जिसे चुना जाता है। इसका मतलब है, इसमें उत्पादित होने वाली मात्रा, उपभोक्ता और पूंजीगत वस्तुओं, नागरिक और युद्ध के सामान आदि के बारे में निर्णय शामिल है।

मार्गदर्शक सिद्धांत: मार्गदर्शक सिद्धांत इस तरह से संसाधनों का आवंटन करना है जो अधिकतम समग्र संतुष्टि देता है।

(2) कैसे उत्पादन करे :- यह अर्थव्यवस्था की दूसरी मूलभूत केन्द्रीय समस्या है यह समस्या तकनीक से संम्बन्धित है। किसी भी वस्तु का उत्पादन करने के लिए अनेक तकनीके होती है। प्रत्येक अर्थव्यवस्था यह चाहती है कि वह सीमित साधनों से अधिक से अधिक वस्तुओं का उत्पादन करें 

उत्पादन कैसे करें (उत्पादन की तकनीक का चुनाव)
• उत्पादन कैसे करें’ की केंद्रीय समस्या विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन के लिए इस्तेमाल की जाने वाली उत्पादन की तकनीक के चुनाव से संबंधित समस्या है। ‘तकनीक’ से हमारा तात्पर्य उत्पादन के लिए उपयोग किए जाने वाले साधनो के विशेष संयोजन से है।
• संसाधनों की उपलब्धता के आधार पर उत्पादन की विभिन्न तकनीकों का उपयोग करके एक वस्तु का उत्पादन किया जा सकता है। मोटे तौर पर, विकल्प दो प्रकार की तकनीकों के बीच होता है- श्रम-गहन(प्रधान) तकनीक और पूंजी-गहन तकनीक।
मुख्य रूप से उत्पादन की दो तकनीके होती है :
(1) श्रम प्रधान तकनीक:- इस तकनीक का प्रयोग उस अवस्था में किया जाता है जब अर्थव्यवस्था के पास श्रम साधन पूंजी साधन की तुलना में अधिक पाए जाते है। इस तकनीक का प्रयोग अल्पविकसित देशों में अधिक मात्रा में किया जाता है क्योंकि इनकी जनसंख्या अधिक होती है तथा पूंजी  कम।

(2) पूंजी प्रधान तकनीक:- इस तकनीक का प्रयोग अर्थव्यवस्था उस स्थिति में करती है जब अर्थव्यवस्था में पूंजी साधन श्रम साधन की तुलना में अधिक होता है। इस तकनीक का प्रयोग विकसित देशों  में किया जाता है क्योंकि  इनके पास पूंजी साधन अधिक मात्रा में होता है।

उदाहरण के लिए: यू.एस. में, पूंजी-समृद्ध होने के कारण, पूंजी-गहन तकनीकों का उपयोग करके गेहूं का उत्पादन किया जाता है, जबकि भारत में, श्रम-संपन्न होने के कारण, श्रम-गहन तकनीकों का उपयोग करके गेहूं का उत्पादन किया जाता है।
मार्गदर्शक सिद्धांत: तकनीक के चुनाव के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत उस तकनीक को अपनाना है जिसके माध्यम से कम से कम संभव दुर्लभ संसाधनों का उपयोग करके न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन किया जा सकता है।

 (3)  किसके लिए उत्पादन किया जाए:- इस केंद्रीय समस्या का अर्थ है कि ‘उत्पादित माल कौन खरीदेगा? जाहिर है, जिनके पास आय है वे खरीद लेंगे। लेकिन असली सवाल उठता है- पैसे की आमदनी कहां से आती है? मुद्रा आय का स्रोत राष्ट्रीय आय है। लोग मजदूरी, किराया, ब्याज और लाभ के रूप में आय अर्जित करते हैं। इस प्रकार, ‘किसके लिए उत्पादन करें’ की केंद्रीय समस्या लोगों के बीच आय के वितरण की समस्या से संबंधित है। 

किसके लिए उत्पादन करना है (या समाज के सदस्यों के बीच उत्पादन और आय के वितरण की समस्या)

• वस्तुओ और सेवाओं  का उत्पादन उन लोगों के लिए किया जाता है जिनके पास भुगतान करने की क्षमता होती है और  वस्तुओ और सेवाओं के लिए भुगतान करने की क्षमता उनकी आय के स्तर पर निर्भर करती है। इसका अर्थ है, यह समस्या उत्पादन के कारकों (भूमि, श्रम, पूंजी और उद्यम) के बीच आय के वितरण से संबंधित है, जो उत्पादन प्रक्रिया में योगदान करते हैं। इस प्रकार यह समस्या ;राष्ट्रीय आय के वितरण’ से सम्बंधित है
मार्गदर्शक सिद्धांत: मार्गदर्शक सिद्धांत यह सुनिश्चित करना है कि समाज की सबसे जरूरी जरूरतें अधिकतम संभव सीमा तक पूरी हों।
• यह समस्या अर्थव्यवस्था के भीतर व्यक्तियों के बीच उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के वितरण से संबंधित है, यानी उन लोगों की श्रेणी का चयन जो अंततः माल का उपभोग करेंगे, यानी गरीबों के लिए अधिक माल का उत्पादन करना है और अमीरों के लिए कम या अधिक के लिए अमीरों के लिए और गरीबों के लिए कम।
• चूंकि प्रत्येक अर्थव्यवस्था में संसाधनों की कमी होती है, कोई भी समाज अपने लोगों की सभी जरूरतों को पूरा नहीं कर सकता है। इस प्रकार, पसंद की समस्या उत्पन्न होती है

उपरोक्त सभी समस्याएं परम्परावादी विचारधारा पर आधारित है नीचे वर्णित अन्य समस्याएं आधुनिक अर्थशास्त्रियों  द्वारा स्पष्ट  की गई।
(4) संसाधनों का कुशलतम  प्रयोग:- प्रत्येक अर्थव्यवस्था के साधन सीमित है इसीलिए इनका अधूरा प्रयोग करना या प्रयोग न करना एक प्रकार से इन्हे व्यर्थ करना है। इसीलिए प्रत्येक अर्थव्यवस्था की यह जिम्मेवारी है कि वह सभी साधनों का पूर्ण एवं कुशलतम  प्रयोग करें ताकि कोई भी साधन बिना प्रयोग के न रहे और न ही इनका कम प्रयोग हो।

(5) संसाधनो का विकास:- किसी भी अर्थव्यवस्था का विकास मानवीय संसाधनो की तरह प्राकृतिक संसाधनो पर भी निर्भर करता है। मानवीय संसाधनो की तरह यह प्राकृतिक संसाधन भी दुर्लभ होते है साथ ही साथ इनमें एक विशेषता ओर पाई जाती है कि भविष्य में एक न एक दिन ये संसाधन समाप्त हो जाएंगे। ऐसा होने पर अर्थव्यवस्था का विकास रूक जाएगा। इसलिए प्रत्येक अर्थव्यवस्था को नए-2 संसाधनों की खोज करनी चाहिए ताकि अर्थव्यवस्था के विकास में किसी प्रकार की कमी न आए इसलिए यह भी एक मूल समस्या बन गई है।

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