मांग का सिद्धांत
मांग का सिद्धांत :-
यह एक वस्तु की उस मात्रा को दर्शाती है जिसे एक उपभोक्ता (या उपभोक्ताओं का समूह ) एक निश्चित अवधि के दौरान एक विशेष कीमत पर खरीदने के लिए तैयार और सक्षम होता है।
मांग :- ‘‘अन्य बाते समान रहने पर‘‘ जब किसी वस्तु की एक निश्चित कीमत पर एक उपभोक्ता वस्तु की जितनी मात्रा क्रय करने के लिए तैयार होता है उसे मांगी गई मात्रा कहते है। लेकिन जब कोई उपभोक्ता किसी वस्तु की विभिन्न कीमतों पर वस्तु की विभिन्न मात्राएं क्रय करता है तो उसे वस्तु की मांग कहते है। मांग के लिए तीन तत्वों का होनाआवश्यक है :-
1. वस्तु को प्राप्त करने की इच्छा
2. वस्तु को प्राप्त करने के लिए पर्याप्त साधन (धन)
3. साधन को खर्च करने की तत्परता
मांग के प्रकार:-
1. कीमत मांग:- ‘‘अन्य बाते समान रहने पर‘‘ पर जब किसी वस्तु की कीमत और उसकी मांगी गई मात्रा के बीच अनुपातिक या फलनात्मक संबन्ध पाया जाता है तो उसे वस्तु की कीमत मांग कहते है। कीमत और मांग के बीच ऋणात्मक संबन्ध पाया जाता है।
2. आय मांग:- ‘‘अन्य बाते समान रहने पर‘‘ जब उपभोक्ता की आय और किसी वस्तु की मात्रा के बीच पाया जाने वाला फलनात्मक संबन्ध उस वस्तु की आय मांग कहलाती है। समान्यतः उपभोक्ता की आय और वस्तु की मांग के बीच धनात्मक संबध पाया जाता है।
3. तिरछी मांग:- ‘‘अन्य बाते समान रहने पर‘‘ पर जब X वस्तु की कीमत और Y वस्तु की मांग के बीच आनुपातिक संबध पाया जाता है तो उसे आढ़ी या तिरछी मांग कहते है। यह संबध दो प्रकार की वस्तुओं के बीच पाया जाता है :-
(1) पूरक वस्तुएं
(2) प्रतिस्थानापन्न वस्तुएं
4. प्रत्यक्ष मांग:- जब किसी वस्तु की मांग प्रत्यक्ष रूप से उपभोक्ता द्वारा अपनी आवष्यकताओं को संतुष्ट करने के लिए की जाती है तो ऐसी मांग को प्रत्यक्ष मांग कहते है। जैसेः- प्यास लगने पर स्वयं पानी पी लेना प्रत्यक्ष मांग का स्पष्ट उदाहरण है।
5. परोक्ष मांग/व्युत्पन्न मांग:- जब किसी वस्तु की मांग उसकी सहायता से बनी अन्य वस्तुओ के लिए की जाती है तो उसे परोक्ष मांग कहते है साधारण भाषा में किसी वस्तु की व्युत्पन्न मांग वह है जो स्वयं उत्पन्न नहीं होती बल्कि किसी अन्य वस्तु के निर्माण के लिए उसकी मांग की जाती है जैसे उत्पादन के साधनों की मांग व्युत्पन्न मांग है।
6. संयुक्त मांग:- जब किसी एक विशेष आवश्यकता को पूरा करने के लिए अनेक वस्तुओ की मांग एक साथ की जाती है तो उसे संयुक्त मांग कहते है। जैसेः- चाय की मांग को पूरा करने के लिए दूध, चीनी, पानी, गैस और चाय पत्ती की मांग संयुक्त मांग है।
7. सामूहिक मांग:- जब किसी एक वस्तु का प्रयोग अनेक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए किया जाता है तो उस वस्तु की मांग को सामूहिक मांग कहते हैं। जैसेः- दूध या बिजली की मांग।
व्यक्तिगत मांग :- यह एक वस्तु की मात्रा को संदर्भित करता है जिसे एक उपभोक्ता एक निश्चित अवधि के दौरान एक निश्चित कीमत पर खरीदने के लिए तैयार और सक्षम है।
मांग फलन :- यह उन सभी तत्वो को स्पष्ट करता है जिनसे किसी वस्तु की मांगी गई मात्रा प्रभावित होती है। यह मांग फलन दो प्रकार का होता है:-
व्यक्तिगत मांग फलन:- उपभोक्ता की मांग जिन तत्वो पर निर्भर करती है उसे व्यक्तिगत मांग फलन कहते है। इसे एक सूत्र की सहायता से स्पष्ट किया जा सकता है-
Dx = f(Pn, Pr, Y, T, E)
Dx = X-वस्तु की मात्रा
f =फलन
Pn – वस्तु की कीमत
Pr – सम्बंधित वस्तु की कीमत
Y – उपभोक्ता की आय
T – रूचि और फैशन
E – अन्य
बाजार की मांग :- यह वस्तु की उस मात्रा को संदर्भित करता है जिसे सभी उपभोक्ता एक साथ मिलकर एक निश्चित अवधि के दौरान एक निश्चित कीमत पर खरीदने के लिए तैयार और सक्षम होते हैं।
बाजार मांग फलन:- बाजार मांग फलन में वस्तुओ की बाजार मांग तथा उसको निर्धारित करने वाले समस्त तत्वो के बीच सम्बंध को दर्शाया जाता है उसे बाजार फलन कहते है। इसे एक सूत्र की सहायता से स्पष्ट किया जा सकता है:-
Dx = f(Pn, Pr, Y, T, Yd, S, G, P, E)
Dx = x वस्तु की मात्रा
Pn -=वस्तु की कीमत
Pr = सम्बंधित वस्तु की कीमत
Y = उपभोक्ता की आय
Yd = आय का वितरण
T = मौसम और जलवायु
G = सरकार की नीति
P = जनसंख्या
E = अन्य
व्यक्तिगत मांग को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं :-
1 वस्तु की कीमत:- वस्तु की मांग पर सबसे अधिक प्रभाव वस्तु की कीमत का पड़ता है। जब किसी वस्तु की कीमत बढ़ती है तो उस वस्तु की मांग कम हो जाती है। लेकिन जब वस्तु की कीमत कम होती है तो वस्तु की मांग बढ़ जाती है। इस प्रकार वस्तु की कीमत और मांग के बीच ऋणात्मक सम्बंध पाया जाता है। ऐसी अवस्था में मांग को प्रभावित करने वाले अन्य सभी कारक स्थिर रहते है।
2 सम्बंधित वस्तु की कीमत:-सम्बंधित वस्तु दो प्रकार की होती हैं:-
(i) पूरक वस्तुएं :- पूरक वस्तुएं वे होती है जो उपयोगिता तभी रखती है जब दूसरी वस्तु बाजार में उपलब्ध हो। पूरक वस्तुओ में एक वस्तु की कीमत कम होने पर उसकी सम्बंधित वस्तु की मांग बढ़ जाती है। ये वस्तुएं एक दूसरे के बिना कोई अस्तित्व नही रखती और इन वस्तुओ का एक दूसरे के स्थान पर प्रयोग करना सम्भव नही होता। जैसेः- कार और पेट्रोल।
रेखाचित्र की सहायता से निरूपण
जैसा कि उपरोक्त चित्र में दिखाया गया है कि x-अक्ष पर कार की मांग है और y-अक्ष पर पैट्रोल की कीमत है। जब कीमत P से बढ़कर P1 हो जाती है तो कार की मांग Q से घटकर Q1 हो जाती है। यह वक्र इस बात का प्रतीक है कि पूरक वस्तु में एक वस्तु की कीमत और दूसरी वस्तु की मांग के बीच ऋणात्मक सम्बंध पाया जाता है।
(ii) प्रतिस्थापन्न वस्तुएं :- प्रतिस्थापन्न वस्तुएं वे वस्तुएं होती है जिनमें वस्तुओ को एक दूसरे के स्थान पर प्रयोग आसानी से किया जा सकता है। ये वस्तुएं एक दूसरे पर आश्रित नही होती है और अपना अलग-अलग अस्तित्व रखती है। जब वस्तु की Y कीमत में परिवर्तन होता है तो इसकी प्रतियोगी वस्तु X की मांग में धनात्मक परिवर्तन होता है। ये दोनो वस्तुएं अपना अलग-अलग अस्तित्व सदैव बनाए रखती है। जैसे :- चाय और काफी
रेखाचित्र की सहायता से निरूपण
जैसा कि चित्र में X-अक्ष पर चाय की मांग और Y-अक्ष पर काॅफी की कीमत है जब काॅफी की कीमत जब Py से बढ़कर Py1 हो जाती है तो चाय की मांग X1 से बढ़कर X2 हो जाती है। अतः प्रतिस्थापन्न वस्तु में से एक वस्तु की मांग और दूसरी वस्तु की कीमत के बीच धनात्मक सम्बंध पाया जाता है।
3 उपभोक्ता की आय :- उपभोक्ता की आय में होने पर सामान्य रूप से उसके द्वारा वस्तुओ की मांग में वृद्धि होगी। लेकिन यह बात सामान्य रूप से सत्य प्रतीत होती है। लेकिन वास्तविकता में हम तीन वस्तुओ के आधार पर आय प्रभाव को स्पष्ट कर सकते हैंः-
- निकृष्ट (घटिया ) वस्तु :- वे समस्त वस्तुए जिन्हें उपभोक्ता उपभोग के स्तर में सबसे निचला स्थान देता है। उपभोक्ता स्वयं इन वस्तुओ का उपभोग करने के लिए उत्सुक नही होता लेकिन आय का स्तर कम होने के कारण इन वस्तुओ का उपभोग करने के लिए वह बाध्य होता है। जैसे-जैसे उपभोक्ता की आय में वृद्धि होती है वह इनके स्थान पर उच्च कोटि की वस्तुओ का उपभोग करने लगता है। इसीलिए आय के आधार पर निकृष्ट वस्तु का मांग वक्र ऋणात्मक ढलान को प्रदर्शित करता है।
रेखाचित्र की सहायता से निरूपण
जैसा कि रेखाचित्र से स्पष्ट होता है कि यदि वस्तु निकृष्ट प्रकृति की है तो उपभोक्ता के द्वारा वस्तु की मांग घटती है जब उपभोक्ता की आय बढती है इस अवस्था में कीमत स्थिर रहती है जैसा कि रेखाचित्र में देखा जा सकता है कि कीमत स्थिर है जबकि आय बढ़ने पर मांग Q1 से घटकर Q हो जाती है।
- अनिवार्य वस्तु/सामान्य वस्तु :- वे वस्तुए जिन्हे उपभोक्ता उपभोग के स्तर में सर्वोपरि मानता है। उपभोक्ता की आय बढ़ने पर इन पदार्थो की मांग बढ़ती है और आय में कमी हो जाने पर इनकी मांग कम हो जाती है।
या
- सामान्य वस्तुएं वे वस्तुएं होती है जिनकी मांग आय बढ़ने पर बढ़ जाती है और आय घटने पर घट जाती है। अर्थात् इन वस्तुओ का आय प्रभाव धनात्मक और कीमत प्रभाव ऋृणात्मक होता है।
रेखाचित्र की सहायता से निरूपण
जैसा कि रेखाचित्र से स्पष्ट होता है कि वस्तु सामान्य प्रकृति की है P बिन्दू पर कीमत स्थिर है आय बढ़ने पर मांग Q से बढ़कर Q2 हो जाती है और मांग वक्र दाईं ओर खिसक जाता है। ठीक इसी प्रकार यदि आय कम होती है तो मांग वक्र बाईं ओर खिसक जाता है।
4 परिवार का आकार :- वस्तुओ की मांग परिवार के आकार पर निर्भर करती है। यदि परिवार का आकार बड़ा है तो वस्तुओ की मांग अधिक होगी लेकिन यदि परिवार का आकार छोटा है तो वस्तुओ की मांगी गई मात्रा कम होगी।
बाजार मांग को प्रभावित करने वाले कारक :-
1 सरकार की नीति :- वस्तुओ की बाजार मांग सरकार की बजट नीति पर निर्भर करती है। यदि सरकार के द्वारा वस्तुओ पर कर लगाया जाता है तो उस पदार्थ की कीमत बाजार में बढ़ जाती है। इसके कारण उसकी मांग कम हो जाती है। ठीक इसी प्रकार यदि सरकार किसी वस्तु की मांग को बढ़ाना चाहती है तो वह उस वस्तु पर लगे हुए करो को या तो कम कर देती है या फिर कर हटा देती है। जिससे वस्तुओ की कीमत कम होने के कारण उनकी मांग बढ़ जाती है।
2 मौसम और जलवायु :- जिन वस्तुओ पर मौसम का प्रभाव पड़ता है जिसे ऊनी कपड़े, बर्फ, रेन कोट आदि। इनकी मांग मौसम आने पर बढ़ जाती है और मौसम समाप्त होने पर इनकी मांग पर बड़ी तेजी से कम हो जाती है। गर्मी के दिनो में बर्फ, कोल्ड ड्रिंक की मांग में वृद्धि हो जाती है लेकिन सर्दी में इनकी मांग कम होती हैं।
3 जनसंख्या का आकार और बनावट :- सामान्य रूप से घनी आबादी वाले क्षेत्रो में वस्तुओ की मांग अधिक हो जाती है जबकि कम आबादी वाले क्षेत्रो में वस्तुओ की मांग कम हो जाती है। ठीक इसी प्रकार जिन क्षेत्रो में बच्चो की संख्या अधिक पाई जाती है तो वहां खिलौने, स्कूल और डाॅक्टर की दुकाने अधिक पाई जाती है। जबकि जिन क्षेत्रो में बूढ़ो की संख्या अधिक है वहाँ छड़ी, हुक्का, धोती आदि की मांग अधिक की जाएगी।
4 उपभोक्ता की रूचि और फैशन :- कीमत और आय के अतिरिक्त मांग को प्रभावित करने वाले अन्य सभी कारक को अधिमान कहा जाता है। व्यापार की प्रकृति आयु और अधिमान परिवर्तन होते रहते है। ठीक इसी प्रकार उपभोक्ता की रूचि और फैशन में भी परिवर्तन होते है। जो वस्तुएं फैशन में होती है उनकी मांग अधिक होती हैफैशन चले जाने पर उनकी मांग कम की जाती है।
5 आय का वितरण :- बाजार मांग पर राष्ट्रीय आय के वितरण का भी प्रभाव पड़ता है। यदि राष्ट्रीय आय का वितरण समस्त वर्गो में उचित किया जाता है तो सभी वस्तुओ की मांग अधिक होगी। लेकिन यदि राष्ट्रीय आय का वितरण किसी एक वर्ग की ओर अधिक कर दिया जाता है तो कुल मांग कम हो जाएगी।
व्यक्तिगत मांग तालिका :-
व्यक्तिगत मांग तालिका:- ‘‘अन्य बाते समान रहने पर‘‘ जब गृहस्थ वस्तु की विभिन्न कीमतो पर कितनी मांग करता है। उसे जब एक सारणी पर दर्शाया जाता है तो उसे व्यक्तिगत मांग तालिका कहते है।
तालिका की सहायता से स्पष्टीकरण
काफी की कीमत ( per kg) | मात्रा (kg) |
700 | 30 |
600 | 40 |
500 | 50 |
व्यक्तिगत मांग वक्र:- व्यक्तिगत मांग जो विभिन्न कीमतो पर की जाती है जब उसे एक वक्र की सहायता से दर्शाया जाता है तो उसे व्यक्तिगत मांग वक्र कहते है। यह वक्र कीमत और मांग के उसी ऋणात्मक सम्बंध को दर्शाता है जो व्यक्तिगत मांग तालिका स्पष्ट करती है। इसी कारण से व्यक्तिगत मांग वक्र का ढलान ऋणात्मक होता है।
रेखाचित्र की सहायता से निरूपण
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट होता है जैसे ही कीमत ₹ 600 से ₹ 500 तक गिरती है, मांग की गई मात्रा 40 यूनिट से बढ़कर यूनिट हो जाती है। जैसे ही कीमत ₹600 से ₹700 तक बढ़ जाती है, मांग की गई मात्रा 40 यूनिट से गिरकर 30 यूनिट हो जाती 50 है। यह अन्य सभी कारकों को स्थिर रखते हुए किसी वस्तु की मांग की गई कीमत और मात्रा के बीच विपरीत संबंध को दर्शाता है। इसलिए मांग वक्र का ढलान ऋणात्मक है|
बाजार मांग तालिका:-
बाजार मांग तालिका:- इसे उद्योग मांग तालिका भी कहते है। यह व्यक्तिगत मांग तालिका का योग है। बाजार मांग तालिका ‘‘अन्य बाते समान रहने पर‘‘ किसी वस्तु की उन सभी मात्राओ को दर्शाती है जो समस्त उपभोक्ताओ के द्वारा एक निश्चित समय पर सम्भावित कीमतो पर खरीदी जाएगी।
तालिका सहायता से स्पष्टीकरण
कीमत (₹) | उपभोक्ता A की मांग
QA (units) |
उपभोक्ता B की मांग
QB (units) |
बाजार मांग
Qm = QA + QB (units) |
1 | 25 | 30 | 25+30 = 55 |
2 | 20 | 25 | 20+25 = 45 |
3 | 15 | 20 | 15+20 = 35 |
4 | 10 | 15 | 10+15 = 25 |
5 | 5 | 10 | 5+10= 15 |
बाजार मांग वक्र:- व्यक्तिगत मांग वक्रो का क्षैतिज जोड़ ही बाजार मांग वक्र कहलाता है। इसकी सहायता से कीमत और मांग के सामूहिक सम्बंधो को दर्शाया जाता है।
रेखाचित्र की सहायता से निरूपण
बाजार मांग वक्र व्यक्तिगत मांग वक्रों की तुलना में अधिक चपटा होता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जैसे-जैसे मूल्य में परिवर्तन होता है, बाजार की मांग में आनुपातिक परिवर्तन व्यक्तिगत मांग में आनुपातिक परिवर्तन से अधिक होता है।
मांग वक्र का ढलान
वक्र की ढलान को Y-अक्ष पर चर में परिवर्तन को X-अक्ष पर चर में परिवर्तन से विभाजित करके परिभाषित किया जाता है। तो, मांग वक्र की ढलान मांगी गई मात्रा में परिवर्तन से और मूल्य में परिवर्तन के अनुपातिक सम्बन्ध को दर्शाता है |
मांग वक्र का ढलान =
- मांग वक्र आमतौर पर बाँये से दांये नीचे की ओर झुका हुआ होता है जो किसी वस्तु की कीमत और मांग की मात्रा के बीच विपरीत संबंध दर्शाता है। अतः ढाल ऋणात्मक है।
- मांग वक्र की ढलान मांग वक्र के स्पाट या चपटे पन को मापती है।
मांग वक्र पर चलन या गमन (मांगी गई मात्रा में परिवर्तन)
1 मांगी गई मात्रा में परिवर्तन :- किसी मांग वक्र पर चलन या संचलन को मांगी गई मात्रा में परिवर्तन कहते है। यह दर्शाता है कि उपभोक्ता मांग वक्र पर ऊपर और नीचे की ओर गमन करता है और यह परिवर्तन केवल कीमत के कारण होता है। यहाँ मांग को प्रभावित करने वाले अन्य सभी कारक उपभोक्ता की आय, सम्बंधित वस्तु की कीमत, रूचि, परिवार का आकार आदि स्थिर रहते है। इस संचलन को दो भागो में बांटा जा सकता है:-
(i) मांग में विस्तार:- ‘‘अन्य बाते समान रहने‘‘ पर जब किसी वस्तु की कीमत कम होती है और उपभोक्ता के द्वारा उस वस्तु की मांग अधिक की जाती है ऐसी अवस्था में उपभोक्ता मांग वक्र पर नीचे की ओर गमन करता है इसे मांग में विस्तार कहते हैं।
रेखाचित्र की सहायता से निरूपण
कीमत (₹) | मात्रा |
20 | 100 |
15 | 150 |
जैसाकि रेखाचित्र से स्पष्ट होता है कि X-अक्ष पर वस्तु की मांग और Y-अक्ष पर वस्तु की कीमत को दर्शाया गया है। जब वस्तु की कीमत 20 से घटकर 15 हो जाती है तो उस वस्तु की मांगी मात्रा 100 से बढ़कर 150 हो जाती है ऐसी अवस्था में मांग को प्रभावित करने वाले सभी कारक उपभोक्ता की आय, रूचि और फैशन , परिवार का आकार आदि स्थिर रहते है और उपभोक्ता मांग वक्र पर नीचे की ओर गमन करता है।
(ii) मांग में संकुचन:- ‘‘अन्य बाते समान रहने‘‘ पर जब किसी वस्तु की कीमत अधिक होती है और उपभोक्ता के द्वारा उस वस्तु की मांग कम की जाती है। ऐसी अवस्था में उपभोक्ता मांग वक्र पर ऊपर की ओर गमन करता है। इसे मांग में संकुचन कहते है।
रेखाचित्र की सहायता से निरूपण
Price (₹) | Demand |
20 | 100 |
25 | 70 |
जैसाकि रेखाचित्र से स्पष्ट होता है कि X-अक्ष पर वस्तु की मांग और Y-अक्ष पर वस्तु की कीमत को दर्शया गया है। जब वस्तु की कीमत 20 से बढ़कर 25 हो जाती है तो उसकी मांगी गई मात्रा 100 से घटकर 70 हो जाती है। ऐसी अवस्था में मांग को प्रभावित करने वाले सभी कारक उपभोक्ता की आय, रूचि और फैशन परिवार का आकार आदि स्थिर रहते है और उपभोक्ता मांग वक्र पर ऊपर की ओर गमन करता है।
मांग वक्र में खिसकाव (मांग में परिवर्तन)
2 मांग में परिवर्तन :- इसे मांग वक्र का खिसकना या स्थानान्तरण या मांग में कमी या वृद्धि कहते है। जब मांग वक्र दाईं या बाईं ओर खिसकता है तो उसे मांग में स्थानान्तरण की स्थिति कहते हैं। इस स्थिति में कीमत स्थिर रहती है तथा मांग के अन्य निर्धारक तत्वो में से किसी एक में परिवर्तन होता है। इस परिवर्तन को स्पष्ट करने के लिए इसे दो भागो में बांटा जा सकता है।
(i) मांग में वृद्धि :- जब किसी वस्तु की कीमत स्थिर रहती है लेकिन मांग को प्रभावित करने वाले अन्य कारको उपभोक्ता की आय, रूचि और फैशन परिवार के आकार में से यदि किसी एक में परिवर्तन होता है और उपभोक्ता द्वारा उस वस्तु की अधिक मात्रा खरीदी जाती है। जिसके कारण उपभोक्ता का मांग वक्र दाईं ओर खिसकता है, इसे मांग में वृद्धि कहते है।
कारण :-
(i) स्थानापन्न वस्तु की कीमत में वृद्धि
(ii) पूरक वस्तु की कीमत में कमी
(iii) उपभोक्ताओं की आय में वृद्धि (समान्य वस्तु की स्थिति में )
(iv) स्वाद और वरीयताओं में धनात्मक प्रभाव
(v) भविष्य में कीमत में वृद्धि की उम्मीद।
(ii) मांग में कमी:- जब किसी वस्तु की कीमत स्थिर रहती है लेकिन मांग को प्रभावित करने वाले अन्य कारको उपभोक्ता की आय, रूचि और फैशन , परिवार के आकार में से किसी एक कारक में परिवर्तन होता है तो उपभोक्ता द्वारा उस वस्तु की कम मात्रा खरीदी जाती है। जिसके कारण उपभोक्ता का मांग वक्र बाईं ओर खिसकता है, इसे मांग में कमी कहते है।
रेखाचित्र की सहायता से निरूपण
कारण :-
(i) स्थानापन्न वस्तु की कीमत में कमी
(ii) पूरक वस्तु की कीमत में वृद्धि
(iii) उपभोक्ताओं की आय में कमी (समान्य वस्तु की स्थिति में )
(iv) स्वाद और वरीयताओं में उदासीनता
(v) भविष्य में कीमत में कमी की उम्मीद।
रेखाचित्र की सहायता से निरूपण
दो प्रकार का खिसकाव
दायीं ओर खिसकाव : मांग में वृद्धि की स्थिति में मांग वक्र DD से दाईं ओर खिसककर DD1 हो जाता है और मांग को प्रभावित करने वाले अन्य कारकों में से किसी एक कारक में अनुकूल बदलाव के कारण मांग OQ से OQ1 तक बढ़ जाती है, जबकि वस्तु की कीमत OP स्थिर रहती है
बायीं ओर खिसकाव : मांग में वृद्धि की स्थिति में मांग वक्र DD से बाईं ओर खिसककर DD2 हो जाता है और मांग को प्रभावित करने वाले अन्य कारकों में से किसी एक कारक में प्रतिकूल बदलाव के कारण मांग OQ से OQ2 तक कम हो जाती है, जबकि वस्तु की कीमत OP स्थिर रहती है
मांग वक्र पर संचलन और माँग वक्र का खिसकना
मांग वक्र पर संचलन
(मांग की मात्रा में परिवर्तन)
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माँग वक्र का खिसकना
(मांग में परिवर्तन ) |
यह मांग को प्रभावित करने वाले अन्य सभी कारकों को स्थिर रखते हुए वस्तु की अपनी कीमत में परिवर्तन (वृद्धि या कमी) के कारण किसी वस्तु की मांग की मात्रा में परिवर्तन को संदर्भित करता है।
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यह वस्तु की अपनी कीमत के अलावा अन्य मांग को प्रभावित करने वाले किसी भी कारक में परिवर्तन के कारण किसी वस्तु की मांग में परिवर्तन को संदर्भित करता है।
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संचलन के प्रकार :-
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खिसकाव के प्रकार :-
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मांगी गई मात्रा में परिवर्तन और मांग में परिवर्तन
मांगी गई मात्रा में परिवर्तन |
मांग में परिवर्तन |
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यह मांग को प्रभावित करने वाले अन्य सभी कारकों को स्थिर रखते हुए, अपनी कीमत में बदलाव के कारण किसी वस्तु की मांग की मात्रा में बदलाव को संदर्भित करता है।
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यह मांग को प्रभावित करने वाले किसी अन्य कारक में बदलाव के कारण किसी वस्तु की मांग में बदलाव को संदर्भित करता है, वस्तु कीमत को स्थिर रखता है।
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यह मांग वक्र पर संचलन को दर्शाता है
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यह मांग वक्र के खिसकाव को दर्शाता है
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Price | Quantity | Price | Quantity |
25 | 50 | 20 | 50 |
20 | 70 | 20 | 70 |
15 | 100 | 20 | 100 |
जब कीमत ₹20 से ₹25 तक बढ़ जाती है तो मांग की गई मात्रा 70 से घटकर 50 हो जाती है
• जब कीमत ₹20 से ₹25 तक बढ़ जाती है, तो मांग की गई मात्रा 70 से घटकर 50 हो जाती है। अधिक कीमत पर कम की मांग की जाती है। (मांग का संकुचन)
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ऊपर की ओर गमन :- मांग में संकुचन
नीचे की ओर गमन :- मांग में विस्तार
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मांग में वृद्धि :- दाई ओर खिसकाव
मांग में कमी :- बाई और खिसकाव
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मांग के अपवाद
मांग के अपवाद से अभिप्राय उन अवस्थाओ से है जिन पर मांग का नियम लागू नही होता है:-
गिफिन वस्तुए :- गिफिन वस्तुए एक अवधारणा है जिसे सर रॉबर्ट गिफेन द्वारा पेश किया गया था। उपभोक्ता की आय बढ़ने पर जिन वस्तुओं की मांग कम हो जाती है, उन्हें गिफिन या घटिया वस्तुएं कहा जाता है।
उदाहरण– मोटा अनाज, मोटा कपड़ा आदि। मांग का नियम गिफिन या घटिया वस्तुओं के सन्दर्भ में लागू नहीं होता है। यही विशेषता इसे मांग के नियम का अपवाद बनाती है।
प्रदर्शनकारी अनिवार्य वस्तुएँ :- कुछ वस्तुएँ ऐसी होती है जो हमारे जीवन में प्रदर्शनकारी होते हुए भी अनिवार्य भूमिका निभाती हैं जैसे- फ्रिज, टी॰वी॰, कार आदि। ऐसी वस्तुओ की कीमत में वृद्धि के बावजूद भी इन पर मांग का नियम लागू नही होता।
मिथ्या आकर्षण :- समाज में दिखाने के लिए या अधिक प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए धनी लोग ऐसी वस्तुओ को खरीदते है जिनकी कीमत अधिक होती है। जैसेः- हीरे, बहुमूल्य मूर्ति आदि।
कीमत बढ़ने की आशंका :- जब उपभोक्ता को इस बात की जानकारी हो कि भविष्य में वस्तुओ की पूर्ति कम हो जाएगी जिसके कारण इस वस्तु की कीमत बढ़ जाएगी। इसी कारण से मांग कीमत बढ़ने के बावजूद भी बढ़ती है। जैसेः- शेयर बाजार पर मांग का नियम लागू नही होता।
आपातकालीन स्थिति:- यदि देश में आपातकाल की स्थिति उत्पन्न हो चुकी हो जैसे- युद्ध और संम्प्रादायिक दंगे। ऐसी स्थिति में मांग का नियम लागू नही होता। क्योकिं ऐसे समय में वस्तुओ का अभाव उत्पन्न होने लगता है और उपभोक्ता यह समझने लगता है कि भविष्य में ये वस्तुएं उपलब्ध नही होगी। ऐसी स्थिति में वह ऊँची कीमत में वस्तुओ की मांग अधिक करते है।
फैशन :-फैशन पर भी मांग का नियम लागू नही होता। जो वस्तुएं फैशन में होती है उन वस्तुओ की कीमत अधिक होने पर भी उनकी माँग रहती है। लेकिन जो वस्तुएं फैशन में नही होती उनकी कीमत कम होने पर भी कम मांग की जाती है।
मांग का नियम
इस नियम का प्रतिपादन प्रो0 मार्षल के द्वारा किया गया उनके अनुसार ‘‘अन्य बाते समान रहने पर‘‘ उपभोक्ता किसी वस्तु की कम कीमत पर अधिक ओर अधिक कीमत पर कम मांग करते है यह कीमत ओर मांग के बीच ऋृणात्मक संम्बन्ध को स्पष्ट करता है
मान्यताएँ:-
(i) मनुष्य एक विवेकशील प्राणी है।
(ii) उपभोक्ता की आय में कोई परिवर्तन नही होना चाहिए।
(iii) उपभोक्ता की आदत में कोई परिवर्तन नही होना चाहिए।
(iv) भविष्य में किसी वस्तु की कीमत में परिवर्तन की आशंका नही होनी चाहिए।
सारणी तथा रेखाचित्र की सहायता से निरूपण
जैसाकि रेखाचित्र में दर्शया गया है X-अक्ष पर वस्तु की मात्रा व Y-अक्ष पर वस्तु की कीमत को दर्शया गया है। जब वस्तु की कीमत Y-अक्ष पर बढ़ रही है तो वस्तु की मात्रा X-अक्ष पर कम हो रही है।
मांग वक्र का ढलान ऋणात्मक क्यों होता है?
मांग वक्र का ढाल नीचे दायीं ओर ढालू होता है जोकि मांग और कीमत के बीच विपरीत सम्बंध को व्यक्त करता है। मांग वक्र का ढलान ऋणात्मक निम्नलिखित कारणों से होता है:-
1. सीमान्त उपयोगिता ह्रासमान नियम:- मांग का नियम सीमान्त उपयोगिता ह्रासमान नियम पर आधारित है। यह नियम बताता है कि जैसे-जैसे किसी वस्तु की अधिक इकाईयों का उपभोग किया जाता है। वैसे-वैसे उसकी सीमान्त उपयोगिता कम होती जाती है। उपभोक्ता के द्वारा किसी वस्तु की कीमत उसकी सीमान्त उपयोगिता के आधार पर चुकाई जाती है। इसी कारण उपभोक्ता कम कीमत पर अधिक और अधिक कीमत पर कम मांग करता है ।
2. उपभोक्ता समूह:- किसी वस्तु की कीमत में वृद्धि अनेक उपभोक्ताओं की संख्याओं में कमी लाती है इसी प्रकार कीमत में कमी होने पर उपभोक्ता के द्वारा वस्तु की मांग बढ़ा दी जाती है। यह एक परम्परावादी विचारधारा है।
3. एक वस्तु के विभिन्न प्रयोग:- बहुत सी वस्तुएं ऐसी है जिनका प्रयोग कई कार्यो में किया जाता है जैसे- बिजली का प्रयोग, पंखे, फ्रिज आदि को चलाने के लिए किया जाता है। यदि बिजली की यूनिट दर बढ़ा दी जाए तो बिजली का प्रयोग उपभोक्ता के द्वारा केवल अनिवार्य कार्यो के लिए किया जाएगा। इस प्रकार उसकी मांग कम हो जाएगी। यह एक परम्परावादी विचानधारा है।
4. आय प्रभाव:- एक वस्तु की कीमत में परिवर्तन के फलस्वरूप उपभोक्ता की वास्तविक आय में परिवर्तन के कारण वस्तु की मांगी गई मात्रा पर जो प्रभाव पड़ता है उसे आय प्रभाव कहते है। एक वस्तु की कीमत में परिवर्तन का प्रभाव उपभोक्ता की क्रय शक्ति पर पड़ता है। कीमत कम होने पर उपभोक्ता की वास्तविक आय बढ़ जाती है जिसके कारण वह वस्तु की अधिक इकाई की मांग करते है और कीमत बढ़ने पर क्रय शक्ति कम होने के कारण मांग भी कम हो जाती है।
5. प्रतिस्थानापन्न प्रभाव:– जब किसी वस्तु की कीमत कम होती है तो उस वस्तु की स्थानापन्न वस्तु स्वयं महंगी हो जाती है इस प्रभाव को प्रतिस्थापन्न प्रभाव कहते हैं। जैसे- चाय की कीमतअधिक होने पर उपभोक्ता के द्वारा काॅफी की मांग का अधिक करना और उसके स्थान पर चाय का प्रयोग कम करना प्रतिस्थापन प्रभाव कहलाता है।
6. कीमत प्रभाव:- आय प्रभाव और प्रतिस्थापन प्रभाव का योग ही कहलाता है। अतः उन्ही सभी कारणों के कारण जब वस्तु की कीमत बढ़ती है तो उपभोक्ता उनकी मांग कम करता है और कीमत कम होने पर उपभोक्ता वस्तु की मांग अधिक करता है।
मांग का सिद्धांत