भारत में पंचवर्षीय योजनाओं के लक्ष्य तथा प्राप्तियां

हेरोन अध्याय12.1

पंचवर्षीय योजनाओं के सामान्य लक्ष्य

आर्थिक प्रणाली :- यह एक ऐसी व्यवस्था को दर्शाता है जिसके द्वारा किसी अर्थव्यवस्था की केंद्रीय समस्या का समाधान किया जाता है।

अर्थव्यवस्था की केंद्रीय समस्या :-

सभी अर्थव्यवस्थाओं में उपलब्ध संसाधन उनकी आवश्यकताओं के संबंध में सीमित होते हैं। इसलिए, प्रत्येक अर्थव्यवस्था को तीन केंद्रीय समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ये “संसाधन आवंटन” की मूल समस्या  हैं। 

क्या उत्पादन करें :- यह चुनाव की समस्या है कि “किन वस्तुओं का उत्पादन किया जाना चाहिए और कितनी मात्रा में”। क्योंकि संसाधन सीमित हैं, इसलिए हम जितना चाहें उतनी मात्रा में हर वस्तु का उत्पादन नहीं कर सकते। प्रत्येक अर्थव्यवस्था को इस समस्या का सामना करना पड़ता है, क्योंकि प्रत्येक अर्थव्यवस्था में असीमित आवश्यकताओं के संबंध में संसाधन दुर्लभ होते हैं।

उत्पादन कैसे करें : उत्पादन कैसे करें की यह समस्या तकनीकी के चुनाव से संबंधित है। उत्पादन की दो तकनीकें हैं :-

(1 ) श्रम प्रधान तकनीक जिसमें पूंजी से अधिक श्रम का उपयोग किया जाता है

(2) पूंजी प्रधान तकनीक जिसमें श्रम से अधिक पूंजी का उपयोग किया जाता है। एक अर्थव्यवस्था को यह तय करना होगा कि किस तकनीक का उपयोग किया जाना है ताकि कुशल उत्पादन प्राप्त किया जा सके

उदाहरण: श्रम और पूंजी उत्पादन के दो कारक हैं। इन्हें आदर्श रूप से संयोजित किया जाना चाहिए, ताकि साधन की प्रति इकाई उत्पादकता अधिकतम हो सके। 
लेकिन भारत में पूंजी की तुलना में श्रम प्रचुर मात्रा में है। यदि हम एक आदर्श अनुपात (श्रम और पूंजी के बीच) पर ध्यान केंद्रित करते हैं तो 
बहुत सारा श्रम अनुपयोगी रह जाएगा।
भारी बेरोजगारी अपने आप में एक सामाजिक बुराई है। तदनुसार, हमारे देश की सरकार आदर्श कारक अनुपात से साधनो का प्रयोग करने पर 
श्रम का अधिक और पूंजी का कम उपयोग करने का निर्णय ले सकती है। अतः अर्थववस्था को चुनाव करना पड़ता है कौन सी  तकनीक का प्रयोग
किया जाये इस प्रकार उत्पादन कैसे करें की समस्या एक केंद्रीय समस्या है

किसके लिए उत्पादन करें :- इस  की केंद्रीय समस्या का अर्थ है कि ‘उत्पादित वस्तुए कौन खरीदेगा? जाहिर है, जिनके पास आय है वे खरीद लेंगे। लेकिन  सवाल ये उठता है – पैसे की आमदनी कहां से आती है? धन आय का स्रोत राष्ट्रीय आय है। लोग मजदूरी, किराया, ब्याज और लाभ के रूप में आय अर्जित करते हैं। इस प्रकार, ‘किसके लिए उत्पादन करें’ की केंद्रीय समस्या लोगों के बीच आय के वितरण की समस्या से संबंधित है।

अर्थव्यवस्था : अर्थव्यवस्था एक ऐसी व्यवस्था है जो लोगों को उत्पादन की प्रक्रिया में काम करने और जीविकोपार्जन के साधन उपलब्ध कराती है

बाजार अर्थव्यवस्था : एक बाजार अर्थव्यवस्था वह है जिसमें उत्पादन के साधन निजी क्षेत्र के स्वामित्व में  नियंत्रित और संचालित किये जाते है इसमें  उत्पादन मुख्य रूप से लाभ कमाने के लिए किया जाता है। (इसे पूंजीवादी अर्थव्यवस्था भी कहा जाता है)

केन्द्रीय नियोजित अर्थव्यवस्था :- समाजवादी अर्थव्यवस्था वह होती है जिसमें उत्पादन के साधनों पर सरकार का नियंत्रण और संचालन होता है।

एक केंद्रीय नियोजित अर्थव्यवस्था वह है जिसमें सभी महत्वपूर्ण गतिविधियों की योजना बनाई जाती है और केंद्रीय योजना  सरकार द्वारा तय की जाती है।

मिश्रित अर्थव्यवस्था :- यह एक ऐसी अर्थव्यवस्था है जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र और निजी क्षेत्र एक दूसरे के साथ सह-अस्तित्व रखते हैं। यहाँ एक अर्थव्यवस्था की केंद्रीय समस्याओं का समाधान आंशिक रूप से प्रत्यक्ष योजना और आंशिक रूप से बाजार के माध्यम से किया जाता है

आर्थिक  नियोजन(पंचवर्षीय योजनाओं) क्या है भारत ने योजना बनाने का विकल्प क्यों चुना?

पूर्व निर्धारित उद्देश्य को पूरा करने के लिए जो योजनाए बनाई जाती है| उसे आर्थिक नियोजन कहते है इसमें केंद्रीय अधिकारी कार्यक्रम और  नीतिया निर्धारित करता है  

स्वतंत्रता के समय भारत एक पिछड़ी अर्थव्यवस्था थी  और देश के नेताओं को विकास की एक प्रक्रिया शुरू करनी थी, जो जनता के जीवन स्तर को ऊपर उठाए और लोगों के लिए एक समृद्ध और अधिक रोजगार के नए अवसर खोले। सोवियत संघ ने योजना प्रक्रिया के माध्यम से विकास की बहुत उच्च दर हासिल की थी, जिसने हमारे नेताओं को आकर्षित किया। इसलिए भारत ने भी योजना बनाने का विकल्प चुना।

नोट:- योजना आयोग का अध्यक्ष स्वंय प्रधानमंत्री होता है।

पंचवर्षीय योजनाओं योजनाओं के लक्ष्य क्यों होने चाहिए? पंचवर्षीय योजनाओं का लक्ष्य क्या है?

योजनाओं के लक्ष्य होने चाहिए ताकि हम जान सकें कि हमारा लक्ष्य क्या है और हम एक निश्चित अवधि के भीतर इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए व्यवस्थित रूप से काम कर सकते हैं।

पंचवर्षीय योजनाओं का लक्ष्य :-

योजना आयोग की स्थापना 1950 में हुई और पंचवर्षीय योजनाओं का युग शुरू हुआ। भारत ने बारवी पंचवर्षीय योजना पूरी कर ली है।

पंचवर्षीय योजनाओं के प्रमुख लक्ष्य हैं :-

सकल घरेलू उत्पाद में वृद्वि  :- इसका तात्पर्य वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन के लिए देश की क्षमता में वृद्धि से है। इसका तात्पर्य या तो देश में उत्पादक पूंजी का एक बड़ा भंडार है या उत्पादक पूंजी और परिवहन, बैंकिंग और संचार आदि जैसी सेवाओं की निपुणता  में वृद्धि है। यह वृद्धि निरंतर होनी चाहिए
आधुनिकीकरण:- वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन को बढ़ाने के लिए नई तकनीक को अपनाना आवश्यक है। नई तकनीक अपनाने को ही आधुनिकीकरण कहा जाता है।

हालाँकि, आधुनिकीकरण का अर्थ केवल नई तकनीक के उपयोग से ही नहीं, बल्कि महिला सशक्तिकरण जैसे सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव से भी है। एक आधुनिक समाज महिलाओं की प्रतिभा का उपयोग उत्पादन क्रियाओ  में करता है ताकि समाज अधिक सभ्य और समृद्ध हो।

आत्मनिर्भरता :- इसका तात्पर्य अन्य देशों से आयातित संसाधनों का उपयोग किए बिना आर्थिक विकास और आधुनिकीकरण को बढ़ावा देने के लिए देश के संसाधनों के उपयोग से है। इसका मतलब है कि भारत में उन वस्तुओं के आयात से परहेज किया जा सकता है जो हमारे देश की नीतियों में अनावश्यक विदेशी हस्तक्षेप को बढ़ावा देती है, विदेशों पर हमारी निर्भरता को कम करने के लिए यह आवश्यक है।

न्यायोचित वितरण :- इसका अर्थ है लोगो के बीच आय और धन का समान वितरण। यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि आर्थिक विकास का लाभ समाज के गरीब तबकों तक भी पहुंचे, न कि अमीरों को ही इसका लाभ मिले  यह आवश्यक है कि असमानता को कम करने के लिए किसी देश का प्रत्येक व्यक्ति अपनी मूलभूत आवश्यकताओं जैसे भोजन, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं को पूरा करने में सक्षम हो।

पूर्ण रोजगार :- उन सभी लोगो को काम मिलना चाहिए जो मजदूरी की वर्तमान दर  पर काम करने के लिए तैयार है और कार्य  करने के योग्य भी है। यदि इन सब को रोजगार मिल जाता है तो वह स्थिति पूर्ण  रोजगार की स्थिति कहलाती है नियोजन में यह एक दीर्घकालीन उद्देश्य है कि सभी को रोजगार मिले

नोट :- पूर्ण  रोजगार का अर्थ यह नहीं है की कोई भी बेरोजगार नहीं होगा अर्थववस्था में हमेशा संरचनात्मक और संघर्षात्मक बेरोजगारी पायी जाती है 

अल्पकालीन उद्देश्य :- ये उद्देश्य योजना में समय की मांग के आधार पर बदलते रहते है|  

प्रत्येक योजना की समय अवधि व उद्देश्य :-
प्रथम योजना :-  1 अप्रैल 1951 – 31 मार्च 1956
1. उत्पादन में वृद्धि करना 2. उत्पादन, आय तथा धन का समान वितरण
दूसरी योजना :-  1 अप्रैल 1956 – 31 मार्च 1961
1. औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि करना 2. भारी उद्योग का विकास करना
तीसरी योजना :-  1 अप्रैल 1961 – 31 मार्च 1966
1. खाद्यान्न के उत्पादन में आत्म-निर्भरता 2. रोजगार के अवसरों में वृद्धि करना
2. असमानता में कमी लाना
इसके उपरान्त एक -एक वर्ष  की योजना का संचालन किया 1966-1969 तक उसके बाद पुनः 1969 में पंचवर्षीय  योजना आरभ्भ हुई
चौथी योजना :-  1 अप्रैल 1969- 31 मार्च 1974
1. विकास की गति को तेज कराना
2. कीमतों मे स्थिरता लाना
पांचवी योजना:-  1 अप्रैल 1974 – 31 मार्च 1979
1. जीवन स्तर को उंचा उठाना मुख्य रूप से समाज के कमजोर वर्ग को
छठी योजना :-  1 अप्रैल 1980 – 31 मार्च 1985
1. निर्धनता का उन्मूलन करना। 2. आय की असमानता में कमी लाना
2. आधिरिक संरचना का विकास करना।
सातवी योजना :- 1 अप्रैल 1985 – 31 मार्च 1990
1. रोजगार के नए अवसरों को पैदा करना 3.कृषि उत्पादकता में वृद्धि करना।
इसके उपरान्त एक -एक वर्ष  योजना का संचालन किया 1990-1992 तक उसके बाद पुनः 1992 में पंचवर्षीय  योजना आरभ्भ हुई
आठवी योजना :- 1 अप्रैल 1992 – 31 मार्च 1997
1.शताब्दी  के अंत तक मानव  शक्ति  का पूर्ण उपयोग
2. प्राथमिक शिक्षा को सभी क्षेत्रों में पहुचाना 3. आधारिक संरचनाओं मजबूत  करना
नौवी योजना :- 1 अप्रैल 1997 – 31 मार्च 2002
1. कृशि एंव ग्रामीण विकास 2. कीमत स्थिरता के साथ संवृद्धि 3. जनसंख्या वृद्धि पर रोक लगाना
दसवी योजना :-  1 अप्रैल 2002 – 31 मार्च 2007
1. उपभोग के स्तर में वृद्धि तथा स्वास्थ्य एंव शिक्षा  संबधी सुविधाओं में सुधार लाकर जीवन की
गुणवता कों बेहतर बनाना।
2.समावेशित  संवृद्धि द्वारा असमानताओं को कम करना।
ग्याहरवी योजना :- 1 अप्रैल 2007 – 31 मार्च 2012
1. बहुमुखी लक्ष्य जिसमें न केवल विकास करना निर्धारित किया गया बल्कि निर्धनता को कम करने का लक्ष्य रखा
2. शिक्षा की गुणवता एंव सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार
3. उच्च कोटि के रोजगार का प्रजनन 4. द्वितीय हरित क्रान्ति के लिए रणनीति
4. पर्यावरण का संरक्षण

बारहवीं योजना :- 1 अप्रैल 2012 , मार्च 2017

1 . तीव्र, सतत एवं अधिक सम्मिलित विकास

2 . सकल घरेलु उत्पाद में 9 % की वृद्धि

पंचवर्षीय योजनाओं उपलब्धिया :-

राष्ट्रीय आय में वृद्धि :- भारत में आर्थिक नियोजन से पहले ब्रिटिश शासन के दौरान राष्ट्रीय आय में ०.5 % प्रतिवर्ष की दर से वृद्धि हुई थी | पहली योजना में इसे 2 .1  %  रखा गया जबकि वास्तव में प्राप्त किया 4 .4 % ,दूसरी योजना से इसे बढ़ा कर 5 % या उससे अधिक रखा गया हे लेकिन पांचवी योजना के बाद से ही हम ये लक्ष्य प्राप्त कर पाए ग्यारहवीं योजना में इससे 9 % रखा गया| 

प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धि :- भारत में आर्थिक नियोजन से पहले ब्रिटिश शासन के दौरान प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय आय में वृद्धि नाममात्र थी परन्तु योजनाओ में ये

2 .9 % औसतन रही है|  दसवीं योजना में ये वृद्धि 6.1 % थी इससे पता चलता है कि इसमें होने वाली वृद्धि जनसँख्या वृद्धि से अधिक थी जोकी देश के लिए संतोषजनक था | 

पूंजी निर्माण की दर में वृद्धि :- यह बचत की दर और निवेश की दर पर निर्भर करती है और योजनाओ की अवधि में इनमे काफी वृद्धि हुई है पहली योजना के अंत तक बचत दर में वृद्धि राष्ट्रीय आय में वृद्धि का  12 .3 % थी  जो ग्यारहवीं योजना के आरम्भ में 37.7 % हो गई जबकि निवेश में होने वाली वृद्धि 10 % से 35 .7 % थी जोकि विकाशील से विकसित होने को दर्शाता है | 

कृषि में संस्थागत एवं तकनिकी परिवर्तन :- यह परिवर्तन दो प्रकार के थे  (१) भूमि सुधार :- इसके अंतर्गत मध्यस्थो को ख़त्म करना , लगान को नियमित करना, भूमि जोतो की उच्चतम सीमा और  पुनः वितरण करना , जोतो की चकबंदी के द्वारा उनके आकार  को बढ़ाना (2 ) 1966 में  प्रौद्योगिकी में जो परिवर्तन हुए वो सरहानीय थे इससे कृषि उत्पादन और उत्पादकता में काफी वृद्धि हुई जिसे हरित क्रांति के नाम से जाना गया अनाज के उत्पादन में यह वृद्धि २०१०-११  में लगभग 6 गुना बढ़ गई और हम कह सकते हे भारत खाद्यान उत्पादन में आत्म निर्भर बन गया है| 

उद्योगों का विकास :-योजनाओ के कारण औधोगिक क्षेत्र में काफी सफलता मिली है लोह, इस्पात , मशीनरी, खाद, रसायन आदि उद्योगों  का आधुनिकीकरण  हुआ और उत्पादन क्षमता में काफी वृद्धि हुई योजनाओ में इनकी वृद्धि दर लगभग 6 .9 % रही है| 

आर्थिक आधारिक संरचना :- यातायात, संचार , सिंचाई की सुविधाए  , बैंकिंग तथा बीमा सुविधाऐ इसके तत्व है इस क्षेत्र में भी अंतराष्ट्रीय स्तर पर भारत को सम्मान मिला | 

सामाजिक आधारिक संरचना :- स्वास्थ्य और शिक्षा इसके अंतर्गत आती है मृत्यु दर 1951 में जो 27 प्रति हजार थी वो 2010 में घटकर 7 .2 प्रति हजार रह गई स्कुल जाने वाले विद्यार्थियों की संख्या में तीन गुना और कॉलेज  जाने वाले छात्रो  संख्या में 5 गुना वृद्धि हुई है | 

रोजगार :- जहां प्रथम योजना में 70 लाख लोगो को इन योजनाओ से रोजगार मिला था तो आठवीं में ये 398 लाख हुआ और ग्यारहवीं योजना में इसे बढ़ाकर 580 लाख करने का लक्ष्य रखा  गया था | 

अंतराष्ट्रीय व्यापार :- इन योजनाओ के कारण आयात और निर्यात के मुल्य में कई गुना वृद्धि देखी  गई 1948 में विदेशी व्यापार 792 करोड़ था जोकि 2010  में बढ़कर 28,26,116 करोड़ हो गया था | 

पंचवर्षीय योजनाओं की असफलताएँ :-

  1. नियोजन निर्धनता को  दूर करने में असफल रहा है भारत में जनसंख्या का लगभग 29.5 % भाग आज भी निर्धनता रेखा के नीचे  अपना जीवन व्यतीत कर रहा है अगर हम विश्व के गरीबो से तुलना करे तो विश्व में हर 5 वां  गरीब  व्यक्ति भारतीय है | 
  2. कीमते निरन्तर बढ़ रही है जिससे अमीरो और गरीबो के बीच  का अंतर बढ़ रहा है सिर्फ पहली योजना को छोड़ कर हर बार मुद्रा स्फीति बढ़ी है  2011 में ये 9.4 % तक पहुँच गई थी वर्तमान में ये और तेजी से बढ़ रही है | 
  3. बेरोजगारी को दूर करने में भी ये सफल साबित नहीं हुई है पहली योजना में 53 लाख लोग बेरोजगार थे और 2009 में इनकी संख्या 4 करोड़ से भी अधिक है  यह देश में सामाजिक अशांति का  और विकास प्रक्रिया के लिए खतरा बनती जा रही है | 
  4. नियोजन के दौरान आधारिक संरचना का विकास अपर्याप्त है विशेष रूप से बिजली का आभाव देश के सम्पूर्ण विकास तथा संवृद्धि की प्रक्रिया में एक बढ़ी रूकावट बनता जा रहा है | 
  5. आर्थिक और समाजिक असमानता सरकार के लिए एक बढ़ी चुनौती बन गई है  | 

पंचवर्षीय योजनाओं पूर्ण रूप से सफल नहीं रही 

 

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