उत्पादन फलन – एक फर्म के भौतिक उत्पादन और उत्पादन के भौतिक कारको के बीच संबंध को उत्पादन फलन कहते है |
या
उत्पादन की मात्रा और उत्पादन के साधनों के बीच जो फलनात्मक संबन्ध पाया जाता है उसे उत्पादन फलन कहते है।
Qx = f(L,K)
Qx = वस्तु X का उत्पादन |
L = श्रम की मात्रा |
K = पूँजी की मात्रा |
यह फलन दर्शाता है की वस्तु X का उत्पादन श्रम(L) तथा पूँजी(K) पर निर्भर करता है |
स्थिर कारक – स्थिर कारक वे कारक होते है जो उत्पादन में परिवर्तन के साथ परिवर्तित नहीं होते है | उत्पादन के शून्य होने पर भी ये होते है | जैसे – भूमि
या
स्थिर साधन वे होते हैं जिनकी मात्रा उत्पादन के स्तर के अनुसार परिवर्तित नहीं होती है। अर्थात् जिन साधनों पर उत्पादन के बढ़ने या घटने का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है उन्हे स्थिर साधन कहते है।
जैसेः- इमारतें और मशीनें
परिवर्ती कारक – परिवर्ती कारक वे कारक होते है जो उत्पादन में परिवर्तन के साथ परिवर्तित होते है | उत्पादन के शून्य होने पर ये भी शून्य होते है | जैसे – श्रमिक
या
वे साधन जिनकी मात्रा उत्पादन के स्तर के अनुसार परिवर्तित होती है उत्पादन के बढ़ने पर इन साधनों की मांग बढ़ जाती है और उत्पादन के घटने पर इन की मांग घट जाती है।
जैसेः- कच्चा माल, श्रम आदि।
नोटः- स्थिर साधनों और परिवर्तनशील साधन के बीच अन्तर केवल अल्पकाल में ही सम्भव है क्योकि दीर्घकाल में सभी साधन परिवर्तनशील होते है।
अल्पकाल और दीर्घकाल में अन्तर स्पष्ट करों।
अल्पकालः– अल्पकाल वह समय अवधि है जिसके दौरान उत्पादन की मात्रा को केवल परिवर्तनशील साधनों की मात्रा में परिवर्तन करके घटाया या बढ़ाया सकता है। इस काल में उत्पादन को एक सीमा से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता है।
दीर्घकालः– समय की वह अवधि जिसमें उत्पादन के सभी साधन परिवर्तन होते है यदि वस्तु की मांग बढ़ती है तो इसे पूरा करने के लिए नई मशीनों और औजारों का प्रयोग इस काल में किया जाता है। इस काल में उत्पादन को शून्य से अनन्त ईकाईयों तक बढ़ाया जा सकता है।
उत्पादन के स्तर और पैमाने के स्तर में अन्तर स्पष्ट करों।
उत्पादन का स्तरः– यह अल्पकाल में लागू होता है यहां स्थिर साधनों को स्थिर रखकर जब परिवर्तनशील साधनो की मात्रा में परिवर्तन करके उत्पादन को परिवर्तित किया जाता है तो उसे उत्पादन का स्तर कहा जाता है उसे एक सीमा तक बढाया जा सकता है।
पैमाने का स्तरः- यह दीर्घकाल में लागू होता है यहाँ समस्त साधनों मे एक निश्चित अनुपात में परिवर्तन करके जब उत्पादन के स्तर को परिवर्तित किया जाता है तो उसे पैमाने का स्तर कहते है यहाँ उत्पादन को शून्य से लेकर अनन्त इकाइयों तक बढ़ाया जा सकता है।
उत्पादन फलन के प्रकार :-
अल्पकालीन उत्पादन फलन – अल्पकालीन उत्पादन फलन में स्थिर कारक स्थिर होते है तथा उत्पादन को केवल परिवर्ती कारक में वृद्धि करके ही बढाया जा सकता है | दुसरे शब्दों में, अल्पकालीन उत्पादन फलन अल्पकाल में किये गए उत्पादन और उसके कारको के बीच फल्नात्मक सम्बन्ध दिखता है, जहा एक कारक स्थिर तथा दूसरा परिवर्ती होता है | अल्पकालीन उत्पादन फलन में परिवर्ती अनुपात का नियम लागु होता है |
Qx = f(L,K)
Qx = वस्तु X का उत्पादन |
L = श्रम की मात्रा |
K = पूँजी की मात्रा |
दीर्घकालीन उत्पादन फलन – दीर्घकालीन उत्पादन फलन में उत्पादन को परिवर्ती कारक तथा स्थिर कारक में वृद्धि कर उत्पादन को बढाया जा सकता है | दुसरे शब्दों में, दीर्घकालीन उत्पादन फलन दीर्घकाल में किये गए उत्पादन और उसके कारको के बीच फल्नात्मक सम्बन्ध दिखता है, जहा दोनों ही कारक परिवर्ती होते है | दीर्घकालीन उत्पादन फलन में पैमाने के प्रतिफल का नियम लागू होता है |
Qx = f(L,K)
Qx = वस्तु X का उत्पादन |
L = श्रम की मात्रा |
K = पूँजी की मात्रा |
कुल उत्पाद – उत्पादन प्रक्रिया में प्रयोग हुए परिवर्ती कारक की प्रत्येक इकाई के उत्पादन का कुल जोड़ कुल उत्पाद कहलाता है |
सीमांत उत्पाद – उत्पादन प्रक्रिया मे परिवर्ती कारक की प्रत्येक अतिरिक्त इकाई का प्रयोग कर प्राप्त अतरिक्त उत्पाद को सीमांत उत्पाद कहा जाता है |
MP = Tn – Tn-1
औसत उत्पाद – उत्पादन प्रक्रिया मे परिवर्ती कारक की प्रत्येक इकाई का प्रयोग कर प्राप्त प्रति इकाई उत्पादन को औसत उत्पाद कहा जाता है |
AP = TP/L
परिवर्ती अनुपातों के नियम की मान्यताएंः–
(1) इसमें स्थिर साधनों को स्थिर रखकर पतिवर्तनशील साधनों की इकाइयों का अधिक मात्रा में प्रयोग करके उत्पादन को बढ़ाया या घटया जा सकता है।
(2) उत्पादन में वृद्धि केवल परिवर्तनशील साधनों की मात्रा में वृद्धि करके की जा सकती है।
(3) उत्पादन तकनीक में कोई परिवर्तन नहीं होता।
(4) परिवर्तनशील साधन एक समान कुशल होते है
परिवर्ती अनुपात का नियम :-
आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने परिवर्ती अनुपातो के नियम की रचना की इस नियम को घटते-बढ़ते अनुपातों का नियम और चल अनुपातों का नियम कहते है। यह नियम अल्पकाल में लागू होता है इसमें कुछ साधन स्थिर और कुछ परिवर्तनशील होते है। स्थिर साधनों को स्थिर रखकर किसी एक परिवर्तनशील साधन (श्रम या पूंजी) की मात्रा में परिवर्तन करके उत्पादन के स्तर को परिवर्तित किया जाता है तो उत्पादन में वृद्धि एक सीमा के पश्चात् कम हो जाएगी अर्थात् सीमान्त उत्पादन घट जाएगा इसी को परिवर्ती अनुपातों का नियम कहते है यह परिभाषा प्रो0 स्टीग्लर के द्वारा दी गई।
अन्य शब्दों में ‘‘उत्पादन के साधनो और उत्पादन के स्तर के बीच पाए जाने वाले अनुपातिक संबन्ध को परिवर्ती अनुपातों का नियम कहते है जब परिवर्तनशील साधनों की मात्रा में अनुपातिक वृद्धि की जाती है तो पहले उत्पादन बढते हुए अनुपात में बढता है फिर समान अनुपात में और फिर अंत में घटते हुए अनुपात में।‘‘
परिवर्ती अनुपात का नियम के अनुसार जैसे – जैसे स्थिर कारको के साथ परिवर्ती कारको की अधिक से अधिक इकाइयों को प्रयोग में लाया जाता है, आरंभ में परिवर्ती कारक का सीमांत उत्पाद बढ़ता है परन्तु एक स्थति ऐसी अवश्य आती है जब परिवर्ती कारक का सीमांत उत्पाद गिरना शुरू हो जाता है अथवा शून्य या ऋणात्मक हो सकता है |
सारणी तथा रेखाचित्र की सहायता से निरूपण
भूमि की इकाइयाँ | श्रम की इकाइयाँ | कुल उत्पाद (TP) | सीमांत उत्पाद (MP) |
1 | 1 | 2 | 2 |
1 | 2 | 5 | 3 |
1 | 3 | 9 | 4 |
1 | 4 | 12 | 3 |
1 | 5 | 14 | 2 |
1 | 6 | 15 | 1 |
1 | 7 | 15 | 0 |
1 | 8 | 14 | -1 |
परिवर्ती अनुपात के नियम के विभिन्न चरण :
परिवर्ती अनुपात का नियम बताता है की अगर उत्पादन को एक ही कारक मे परिवर्तन करके बढाया जाए और दुसरे कारक को स्थिर रखा जाए तो कुल उत्पाद (TP) और सीमांत उत्पाद (MP) पर क्या प्रभाव पड़ता है | उत्पादन पर पड़ने वाले इन प्रभावों को तीन चरणों में बांटा गया है जो निम्न है –
प्रथम चरण – आरंभ में सीमांत उत्पाद (MP) बढ़ रहा होता है इसलिए कुल उत्पाद (TP) बढती दर पर बढ़ता है | इसे कारक के बढ़ते प्रतिफल की अवस्था भी कहा जाता है |
नोट:- जब कुल उत्पाद बढती दर से बढता है तो उस अवस्था कों बढतें प्रतिफल की स्थिति कहतें है।
द्वितीय चरण – जब सीमांत उत्पाद (MP) घट रहा होता है तब कुल उत्पाद (TP) घटती दर पर बढ़ता है | इसे कारक के ह्रासमान प्रतिफल की अवस्था कहा जाता है |
तृतीय चरण – जैसे ही सीमांत उत्पाद (MP) ऋणात्मक होता है कुल उत्पाद (TP) गिरना आरंभ कर देता है | इसे कारक के ऋनात्मक प्रतिफाल की अवस्था भी कहा जाता है |
नोट:- जब कुल उत्पाद घटती हुइ्र्र दर पर बढता है और के सीमा के पश्चात् घटना आरभ्भ कर देता है। तों उसे घटते प्रतिफल का नियम कहते है।
परिवर्ती अनुपात नियम के विभिन्न चरणों के कारण –
परिवर्ती अनुपात का नियम बताता है की अगर उत्पादन को एक ही कारक मे परिवर्तन करके बढाया जाए और दुसरे कारक को स्थिर रखा जाए तो कुल उत्पाद (TP) और सीमांत उत्पाद (MP) पर क्या प्रभाव पड़ता है | उत्पादन पर पड़ने वाले इन प्रभावों के निम्नलिखित कारण है –
प्रथम चरण – आरंभ में सीमांत उत्पाद (MP) बढ़ रहा होता है इसलिए कुल उत्पाद (TP) बढती दर पर बढ़ता है | कारक के बढ़ते प्रतिफल का कारण परिवर्ती कारक की इकाइयों को बढाकर स्थिर कारको का पूर्ण उपयोग करना, कार्यो का विभाजन कर कुशलता को बढ़ाना है, परिवर्ती कारक और स्थिर कारक के बीच उचित समन्वय आदि कारण है |
द्वितीय चरण – जब सीमांत उत्पाद (MP) घट रहा होता है तब कुल उत्पाद (TP) घटती दर पर बढ़ता है | कारक के ह्रासमान प्रतिफल का कारण है जैसे – जैसे परिवर्ती कारक की मात्रा बढती जाती है स्थिर कारको को न बढाने की वजह से स्थिर कारको पर दबाव बढ़ता जाता है, जिसके कारण सीमांत उत्पाद गिरना शुरू हो जाता है |
तृतीय चरण – जैसे ही सीमांत उत्पाद (MP) ऋणात्मक होता है कुल उत्पाद (TP) गिरना आरंभ कर देता है | कुल उत्पाद गिरता है क्योंकि परिवर्ती कारक की मात्रा बढती लगातार बढ़ाने के कारण और स्थिर कारको को न बढाने की वजह से स्थिर कारको की तुलना में परिवर्ती कारको की मात्रा बहुत अधिक हो जाती है जिसके कारण सीमांत उत्पाद ऋनात्मक हो जाता है और कुल उत्पाद गिरना आरम्भ कर देता है |
कुल उत्पाद (TP) तथा सीमांत उत्पाद (MP) में सम्बन्ध –
(i) आरंभ में सीमांत उत्पाद (MP) बढ़ रहा होता है इसलिए कुल उत्पाद (TP) बढती दर पर बढ़ता है |
(ii) जब सीमांत उत्पाद (MP) घट रहा होता है तब कुल उत्पाद (TP) घटती दर पर बढ़ता है |
(iii) जब सीमांत उत्पाद (MP) शून्य होता है तब कुल उत्पाद (TP) अधिकतम होता है |
(iv) जैसे ही सीमांत उत्पाद (MP) ऋणात्मक होता है कुल उत्पाद (TP) गिरना आरंभ कर देता है |
औसत उत्पाद (AP) तथा सीमांत उत्पाद (MP) के बीच सम्बंध –
(i) जब सीमांत उत्पाद (MP) बड़ा होता है औसत उत्पाद (AP) से तब औसत उत्पाद (AP) बढ़ता है |
(ii) जब सीमांत उत्पाद (MP) छोटा होता है औसत उत्पाद (AP) से तब औसत उत्पाद (AP) घटता है |
(iii) जब सीमांत उत्पाद (MP) और औसत उत्पाद (AP) दोनों बराबर होते है तब औसत उत्पाद (AP) अपने उच्चतम बिंदु पर होता है |
(iv) सीमांत उत्पाद (MP) शून्य और ऋणात्मक हो सकता है पर औसत उत्पाद (AP) कभी शून्य और ऋणात्मक नहीं हो सकता है |
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